(सारे चित्र 'गूगल-खोज'ए साभार )
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लगे ‘सन्तई’ में
मलिन काले काले दाग |
‘छल-प्रपंच’ में
रँगे हैं, वे तेरे ‘वैराग’ ||
तूने की ‘मनमानियाँ’,
बन कर ‘सन्त’ महान |
हम समझे ‘कोकिल’
तुझे, पर तू निकला ‘काग’ ||
मन में तेरे ‘ज़हर’ था, ‘शकर-पगे’ थे ‘बोल’ |
मन में तेरे ‘ज़हर’ था, ‘शकर-पगे’ थे ‘बोल’ |
हमें लुभाता रहा
था, गा कर ‘झूठे राग’ ||
झूम झूम कर
नाचता, करता था ‘सत्संग’ |
कर ‘सम्मोहन’
धर्म का, रचा ‘ठगी’ का ‘स्वाँग’ ||
तूने दे दी थी हमें, कलुषित ‘ज्ञान-अफ़ीम’ |
उतर गया है अब
‘नशा’, ‘बोध’ गया है जाग ||
थीं, ‘भँवरों’
के वेश में, ‘बर्रें’ तेरे साथ |
“प्रसून” भोले
फँस गये, छला गया था ‘बाग’ ||
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सुन्दर और अतीक अर्थ लिए दोहे गजल !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
वाह बहुत खूब !
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