(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
(ब्याजोक्ति-प्रधान रचना)
(ब्याजोक्ति-प्रधान रचना)
सन्त निकोलस की तरह, त्यागी हों ‘अलमस्त’ |
तो. दुनियाँ में कहीं फिर. रहे न कोई त्रस्त ||
‘अपनेपन’ का सभी से, जो रक्खे ‘व्यवहार’ |
‘प्रेम’ बढ़े संसार में, ‘नफ़रत’ होगी ध्वस्त ||
‘आस्था’ और ‘उदारता’, हैं ईश्वर के रूप |
‘समानता’ हो हर तरफ़, ‘भेद-भाव हों नष्ट ||
अन्न बढ़े हर देश
में, करे पलायन ‘भूख’ |
भरें पेट भूखे सदा, रहें सदा आश्वस्त ||
‘लामकान’ पायें सभी, अब समुचित आवास |
सारी दुनियाँ की दशा, हर दिन रहे दुरुस्त ||
“प्रसून” अब हर ‘बाग’ में, खिलें, लुटाएं ‘हास’ |
‘पतझर’ उस से दूर हो, ‘बसन्त’ हो मत रुष्ट ||
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मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर 'ख्रीस्त-दिवस' पर आप का स्वागत है !
मेरी क्रिसमस !
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-12-2013 को चर्चा मंच की चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
आभार
सुन्दर प्रस्तुति। शुभ संध्या। क्रिसमस दिवस की बधाई हो।
जवाब देंहटाएंमैरी क्रिसमस ! उत्साह बरकरार रहे |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
बहुत सुंदर...
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