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यह सच है कुछ ‘सन्त’ हैं, सच्चे कई ‘फ़कीर’ |
‘आमिल-कामिल’ भी छुपे, होंगे ‘असली पीर’ ||
सच्चे ‘आशिक़’ खुदा के,साधू कई ‘अलमस्त’ |
खाते ‘रूखी रोटियाँ’, पीते ‘ठंडा नीर’ ||
अपने मन को जीत कर, जीते होकर ‘शान्त’ |
देख ‘पराये माल’ को, होते नहीं ‘अधीर’ ||
सचमुच ‘सच्चे नाम’ का, लेते जो ‘आनन्द’ |
पर इनकी ही ‘आड़’ में, पनपे ‘पेटू पीर’ ||
इनका ‘पल्लू’ पकड़ कर, ठगते कुछ ‘ठग’ आज |
पैने ‘तीरों में कई, रक्खे ‘गुठ्ठल तीर’ ||
‘प्रसून” ‘सच्चे ज्ञान’ की, यदि तुम को है ‘प्यास’ |
ढूँढो ज्ञानी सन्त कुछ, करके कुछ ‘तदवीर’ ||
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वाह बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (23-12-13) को "प्राकृतिक उद्देश्य...खामोश गुजारिश" (चर्चा मंच : अंक - 1470) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह जी वाह ... बहुत सुन्दर ...
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