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धन जिनका ‘भगवान’ है, ‘लक्ष्मी;
करते सिद्ध |
‘तन-मन’ दोनों खोखले, ऊपर से समृद्ध
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करें रात में तस्करी, दिन में बनें ‘दलाल’
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इनमें कई ‘उलूक’ हैं, हैं थोड़े से ‘गिद्ध’
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साम-दाम या दण्ड से,या फिर ‘भेद-कुनीति’
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चल कर छल से हो गये, कुछ तो
जगत्प्रसिद्ध ||
कुछ ‘कुबेर’ के लाल हैं, कुछ ‘कारूँ’
के लाल |
शासन ‘पूजीवाद’ का,करने को कटिबद्ध
||
‘मनमानी’ के ‘धनुष’ पर, ‘अपराधों’
के ‘बाण’ |
‘अनुशासन’ के जिस्म पर, करते रहते बिद्ध
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‘असुर-दानवों’ के सदा, रहते ‘खुदमुख्तार’
|
‘पाप-ज्ञान’ के ‘ग्रन्थ’ के,प्रवीण
और प्रबुद्ध ||
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मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर 'घनाक्षरी-वाटिका' में आप का स्वागत है !
बहुत सुंदर वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट विरोध
new post हाइगा -जानवर
SUNDAR V SARTHAK POST .AABHAR
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