(विगत से आगे)
गूगल-खोज से लिये गये इस चित्र का घट्न सम्बन्ध नहीं है, अपितु यह केवल एक
सांकेतिक चित्र है |
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मेरे साथ उन हिमायतियों में
से कोई नहीं आया | मैं और चोर का तथाकथित साथी दिनेश उस पुलिस वाले के साथ थाने पहुंचे | वहाँ सिविल ड्रेस
में बैठे एक दरोगा नुमा व्यक्ति
ने तपाक से पूछा_”क्या है ?”
मैं ने कहा-“मेरा सामान चोरी हो गया |”
“यह कौन है ?”
“लोगों ने बताया कि इसके साथी ने मेरा सामान चुराया है |”
पता चला कि वह सिविल ड्रेस वाला पुलिस वाला सुब इन्सपेक्टर था | बहुत ही कुशल
और चतुर नीतिज्ञ था वह घुटा मंजा पुलिसिया चाल में | मोटा बेंत बजाया गया उस नशेड़ी
दिनेश की टाँगों में किन्तु वह लगातार कहता रहा-“साहब मैने किसी को नहीं दिया इनका
सामान |”
“फिर बता, किसने चुराया इन का सामान ?”
“मुझे क्या पता ? साहब, मेरा मोबाइल ले गया इन का साथी |”
“आप बताइये इस का मोबाइल किस के पास है ?” सब इन्स्पेक्टर ने मेरी ओर मुख किया
|
मुझे काटो तो खून नहीं ! १४
अक्तूबर २०१३ की वह रात सचमुच काली थी मेरे लिये, भले ही वह आश्विन की शारदी
शुक्ला दशमी की रात्रि थी उजली धवल पर मेरे सम्मान पर काला धब्बा बन गयी थी | मुझ
से जीवन में प्रथम बार ऐसा प्रश्न किया किसी ने |
“वह तो एक आदमी ले गया जो कि इस को
पकडने वाले का साथी था |”
“नहीं साहब मोबाइल इन के पास आगया था | मैने इन से माँगा मगर इन्होंने मुझे
नहीं दिया |” - दिनेश ने मेरे विरुद्ध शिकायत की | लों, अब मैं भी था दो आरोपियों
में से एक ! लेने के देने पड़ गये !!
इतने समय में दो एक और पुलिस की वर्दी वाले आये और दिनेश के बेंत या दो एक
थप्पड़ या एक आध लात जड़ गये | मेरे बेटे राहुल का संयोग से फोन आया उसे जब मेरे
द्वारा इस सम्पूर्ण घटना का पता चला तो उसने हल्के से झिड़कते हुये कहा-“पापा आप
मामला निपटा कर सीधे घर आजाइये |” जब मैने महत्त्वपूर्ण पत्रजातों की बात बताई तो
उस ने अपने मित्रों को यह बात बता दी | दिल्ली के उस के एक मित्र- सी. बी. आई. के
अफसर से की, जी. आर. पी. के उस सब इंस्पेक्टर से बात करवाई गयी | इस से तो मामला सुलझाने
की बजाय और उलझ गया | इस उलझाव का बहुत बड़ा कारण था बबलू की छल-नीति | उस ने मुझे
अपने मोबाइल का जो नम्बर दिया, उसे चार पाँच बार लगाने पर हर बार उस का स्विच ऑफ
जा रहा था | पुलिस वालों ने भी मिलाकर देखा पर वही धाक के तीन पात ! बहुत शातिर
निकला वह मेरा अमानत का रखवाला और हिमायती !! अब मैं बिलकुल अकेला था |
सब इन्स्पेक्टर ने उस अफसर से
कहा- “देखिये साहब, इन अंकल जी का कहना है कि इन का सामान इस आदमी के साथी द्वारा
उठाया गया है और यह आदमी कहता है कि इन
अंकल जी ने इस का मोबाइल गायब करवाया है | अब अगर इनकी ओर से एफ. आई. आर. कीजाएगी
तो उस की ओर से भी की जाये- गी,वर्ना इस आदमी के लोग मेरे खिलाफ हलागुला करवा सकते
हैं | हाँ,दिनेश की जेब से तीन पुडियां पकड़ ली गयीं- एक चरस की, थोड़ी सी अफ़ीम की
एक और ज़रा सी स्मैक की एक पुड़िया | उस की पिटाई फिर हुई और अब उसे काबू करने के
लिये पुलिस के पास काफ़ी मज़बूत पकड़ थी | | अब तक नौ बज चुके थे | डेढ़ घंटे की इस
झंझट से नतीजा कुछ भी न निकला | उस सबइंस्पेक्टर की बहस सी. बी. आई. अफसर और मेरे
बेटे से कई बार हो चुकी थी |
और एक कद्दावर लम्बे पुलिस वाले ने
उस बात की ज़ोरदार हामी भरी एवं उस के दो एक डंडे जड़ दिये | उस के घरवालों ने
खुशामद दरामद कर के हाथ पाँव जोड़ कर उस को बचाया | उस की बहिन और भानजी भी उसे कोस
रहे थे-“क्यों तुम्हें शर्म है कि नहीं, चलो यहाँ से ?” आदि आदि | उस की पांचवी
बार पिटाई लग गई | सब इन्स्पेक्टर ने अपने वरिष्ठ अधिकारी एस. ओ. से फोन पर सारी
घटना का हवाला दे कर परामर्श किया और अब वह मेरी ओर उन्मुख हो कर बोला-“अंकल
जी.मैं अब दोनों की ओर से रिपोर्ट कर देता हूँ आप दोनों ही जेल जायेंगे | यह नशीली
चीज़ों के लिये और आप इस का मोबाइल गायब कराने के लिये | जब आप के पास एक बार
मोबाइल आ गया था | तो आप ने इसे क्यों नहीं सौंप दिया या अपने पास क्यों नहीं रख
लिया ? मैं तो इस के बाप-दादों से आप का सामान उगलवा लेता | अब मैं आप की मदद करूँ
तो कैसे ?”
मैने अपने पुत्र से फिर सलाह
ली उस की उस आदमी से तथा सब इन्स्पेक्टर से कई बार झड़प व बातचीत हुई | एक बार तो
लडके की राय पर मैने कह दिया-‘ठीक है दोनों तरफ़ से मुकदमा दायर कर दीजिये |देखा
जायेगा | मैं लड़ लूंगा हाईकोर्ट तक | एक बात बताइये मुझे आप ! जिसकी जीवन भर की
कमाई चली जाये उस की सोच समझ और मनोदशा क्या दुरुस्त रह सकेगी ? देखिये, जब मैं
फोन से इस नशेड़ी के घरवालों से इस की असलियत की जानकारी लेने का प्रयास कर कर रहा
था, इसे बीच मुझ से मोबाइल उस नौजवान ने छीन लिया |“
“आप ने उन लोगों से मोबाइल बापस क्यों नहीं लिया ?”
“मुझे उन लोगों की ज़रूरत
थी अपने मामले में पैरवी के लिये | वे मेरे साथ यहाँ तक आने वाले थे | फिर मैं
इतने लोगों से इस बुढ़ापे में लड़ लेता क्या ? मेरी अक्ल कटी हुई थी | मानसिक रूप से
मैं प्रताडित था यह आप क्या जानें ! मैं अकेला था और वे बीसियों | आप के इन साहब
ने मुझे एक दम उतार लिया और मुझे इस नशेड़ी के साथ ले आये | मेरे कहने के बावजूद
इन्होंने उन्हें नहीं उतारा | ट्रेन चल दी तो मैं क्या करता |” मेरी आवाज़ की तेज़ी
ने काम कर दिया था |
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
यह मेरी दर्द गाथा है |
हटाएंमुझे काटो तो खून नहीं ! १४ अक्तूबर २०१३ की वह रात सचमुच काली थी मेरे लिये, भले ही वह आश्विन की शारदी शुक्ला दशमी की रात्रि थी उजली धवल पर मेरे सम्मान पर काला धब्बा बन गयी थी | मुझ से जीवन में प्रथम बार ऐसा प्रश्न किया किसी ने |
जवाब देंहटाएंइसे रोमांचक वाकये की तदानुभूति हमें भी हो रही है। रोचक विवरण।
मेरे दर्द में शरीक होने के लिये आभार !
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