दिनाँक व दिन किसी दोष के कारण एक दिन पूर्व का आ रहा है !
(बुधवार २३-१०-२०१३)
'गूगल-खोज' से लिया गया यह चित्र केवल सांकेतिक है | इस का घटना-
(बुधवार २३-१०-२०१३)
'गूगल-खोज' से लिया गया यह चित्र केवल सांकेतिक है | इस का घटना-
क्रम से कोई सम्बन्ध नहीं है !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
(ख)अमानत में खयानत
+++++++++++++++++
मैं क्या करता ? खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे ! मैं किस पर अपनी पीड़ा का बोझ
डालता ? मेरा कौन था वहाँ ?? मेरा ‘विशवास’ चला गया था | मेरे ‘आत्म विशवास घायल हुआ था | मेरी ‘सतर्कता’ पर चोट लगी थी |
सामने बैठा वह नौजवान ही मेरालक्ष्य हो सकता था मेरी इस दशा का कारण | मेरी
बौखलाहट उसी पर बरस पड़ी-“ मेरा साम,अन् तुम्हारे कारण गया है | एकाएक इस अप्रत्याशित ‘वाणी-आक्रमण’
से बौखला गया वह भी | ‘रेलगाड़ी’ दौड़ रही थी मेरा सामान लुटवा कर या मुहँ छुपाने को
भाग रही थी | मैं उस नौजवान को डांट रहा
था | अगले स्टेशन पर गाड़ी रुकी तब तक उस युवक पर मेरी आरोप भरी फटकार का असवर पड़
चुका था | इससे पहले कि उस की बूढ़ी माँ कुछ समझ पाती ,वह उतरा और एक दूसरे नौजवान,
जो कि उस से कुछ बड़ा था, को कस कर पकड़ कर ले आया | वह काफ़ी बदहवास था | नशे का उस पर असर था | जो नौजवान
मेरे सामान के लिये उत्तरदाई था और इस स्मैकिए को पकड़ कर लाया था उस का नाम था
बबलू और वह था हाथरस सिटी का निवासी | आते ही एक विजेता की भाँति बोला-“अंकल जी!
सामान इस के साथी ने चुराया है |“
उस की इस बातको सुन कर डिब्बे
में सभी नौजवान चौंक कर सक्रिय हो गये थे | वह रोने का स्वाँग करता हुआ लगातार
कहता रहा-“मैंने किसी को सामान उतार कर नहीं दिया |” कई लोगों ने और मैंने भी जब
उस से पूछा कि वह कैसे कह सकता है कि उस की साजिश से सामान गया है तो बबलू ने
बताया-“यह अभी स्टेशन पर कई डिब्बों में घुसा और उतरा किसी से गुप-चुप तरीके से
बातें कर रहा था | फोन पर भी इस ने किसी से शक पैदा करते हुये बात की |” इस पर सभी
को उस पर सन्देह हो गया और सब ने उसे बहुत मारा पर कोई खतरनाक चोट नहीं आने दी | मैंने
लोगों को बड़ी कठिनाई से रोका नहीं तो कोई अनहोनी हो सकती थी | कई बार छोटे
स्टेशनों पर उस ने उतरने का प्रयत्न किया पर बहुत से भर्ती से लौटे जवान उसे रोके
रहे | एक छोटे स्टेशन पर वह उतरा किन्तु बबलू उस के पीछे उतरा तथा उसे कास कर पकड़
कर ले आया और उस ने बताया-“ जायेगा कहाँ इस का मोबाइल मेरे पास है |”
मेरा हाल, ‘एक प्याला प्राप्त किसी प्यासे’
जैसा था | मुझे लगा कि शायद मेरा सामान मिल जायेगा | मेरी जान में जान आ गई थी |
लोगों ने यह तय किया कि आगे हाथरस सिटी आएगा वहाँ इसे गी.आर.पी. को सौंप दिया जाये
| इस पर मैं ने जब यह पूछा कि मेरे साथ कौन जायेगातो बबलू ने कहा-“ अंकल जी आप
चिन्ता न करें | मैं आप के साथ हूँ न !” उसके इन ‘सान्त्वना-वचनों’ पर उस की माँ पानी
फेरती रही यह कह कर-“नहीं तू कही नहीं जायेगा | इनका सामान है ये खुद निपटें | तू
क्यों टांग अडाता है ?” बबलू के लाख समझाने पर भी वह वृद्धा मेरे साथ जाने को
तैयार नहीं हुई तो नहीं हुई | खैर, हाथरस सिटी आने पर बबलू एक खुले गेहुएं रँग के और एक श्यामले नौजवान
सहित दो तीन और नौजवानों को अपना दायित्य सौंप कर उतरने लगा | यहाँ ट्रेन कुछ अधिक
देर न सही पर छोटे स्टेशनों से तो अधिक रुकनी थी | साथ के उन तीन चार नौजवानों ने
मुझे मथुरा में चोर के उस नशेड़ी साथी को सौंपने का इरादा पक्का कर लिया था | उस
नशेड़ी ने अपना नाम दिनेश बताया था | मैं क्या करता ? असहाय था | हर एक की राय मेरे
लिये कीमती थी |
मेरे मस्तिष्क में एक बात
तो कौंधी | मैंने बबलू को तुरत बुला कर मोबाइल माँग लिया जिसे उस ने बिना किसी
हीला हवाला के मुझे दे दिया | ट्रेन काफ़ी देर रुकी पर पुलिस अभी तक नहीं आयी | हाँ
! इस बीच दिनेश सहित दोतीन नौजवान बबलू के मोबाइल से उस के बताए नंबरों पर उस की
पत्नी और बहिन से बात करने तथा उस के नाम पता की जाँच पडताल करने का प्रयास करते
रहे | उस की हर झूठ पर उस की पिटाई होंती | वह एक के बाद एक नए बहाने कर के सन्देह
को और भी पुष्ट करता रहा और पिटता रहा | वह मोबाइल दो तीन हाथों में अदल बदल कर
रहा बीच में मेरे हाथ में भी आया | पर अन्त में उस थोड़े गोरे नौजवान ने अपने हाथ
में ले लिया | इसी बीच एक जी..आर.पी. का जवान दिखाई दिया जो हल्ला गुल्ला सुन कर
भेजा गया प्रतीत होता था | लोगों की पुकार पर उस ने उस नशेड़ी को उतारा और मुझे साथ
चलने को कहा | हडबडी में मोबाइल मैं न ले सका | मैं अपना ब्रीफकेस ले कर उतरा और
उस हिमायती गेहुएं जवान से साथ चलने को कहता ही रह गया | न तो पुलिस वाला ही रुका
और न ही ट्रेन | ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ ली और में था जी.आर.पी..थाने में उस नशेड़ी के
साथ | सिकंदाराराव में जी.आर.पी. के
केंद्र के न होनी की बात मुझे पहले ही बता दी गयी थी |
मेरे मस्तिष्क में एक बात
तो कौंधी | मैंने बबलू को तुरत बुला कर मोबाइल माँग लिया जिसे उस ने बिना किसी
हीला हवाला के मुझे दे दिया | ट्रेन काफ़ी देर रुकी पर पुलिस अभी तक नहीं आयी | हाँ
! इस बीच दिनेश सहित दोतीन नौजवान बबलू के मोबाइल से उस के बताए नंबरों पर उस की
पत्नी और बहिन से बात करने तथा उस के नाम पता की जाँच पडताल करने का प्रयास करते
रहे | उस की हर झूठ पर उस की पिटाई होंती | वह एक के बाद एक नए बहाने कर के सन्देह
को और भी पुष्ट करता रहा और पिटता रहा | वह मोबाइल दो तीन हाथों में अदल बदल कर
रहा बीच में मेरे हाथ में भी आया | पर अन्त में उस थोड़े गोरे नौजवान ने अपने हाथ
में ले लिया | इसी बीच एक जी..आर.पी. का जवान दिखाई दिया जो हल्ला गुल्ला सुन कर
भेजा गया प्रतीत होता था | लोगों की पुकार पर उस ने उस नशेड़ी को उतारा और मुझे साथ
चलने को कहा | हडबडी में मोबाइल मैं न ले सका | मैं अपना ब्रीफकेस ले कर उतरा और
उस हिमायती गेहुएं जवान से साथ चलने को कहता ही रह गया | न तो पुलिस वाला ही रुका
और न ही ट्रेन | ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ ली और में था जी.आर.पी..थाने में उस नशेड़ी के
साथ | सिकंदाराराव में जी.आर.पी. के
केंद्र के न होनी की बात मुझे पहले ही बता दी गयी थी |
\
(क्रमश:)
रेल क्या भारत में जन जीवन कहीं भी सुरक्षित नहीं है माल -असबाब की कौन कहे। एक जीवंत परिवेश रचा है इस वृत्तांत ने लोगों के रुझान का खुलासा किया है। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।
जवाब देंहटाएं