(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
इतनी देर में वहाँ एक दीवान नीरज सिंह आ
गये थे | पूर्ण स्वस्थ, प्रसन्न-वदन और व्यवहार-कुशल | वे सबइंस्पेक्टर पर भी भारी
प्रतीत होते थे क्यों कि सब इंस्पेक्टर अब चुप ही रहा | उनहोंने मुझे सान्त्वना दे
कर कहा-“आप के सम्मान को ठेस पहुँचेगी | लम्बे समय के बाद भी कुछ हासिल नहीं होगा
क्यों कि आप के पक्ष में गवाही का अभाव है
| सच बात तो है कि इन भर्ती वालों हरक़तें ऐसी ही होंती हैं | वे लोग अपने मक़सद
में कामयाब हो गये | उन्हें आप की आड़ में इस बेबकूफ से कुछ सामान चाहिये था वह
उन्हें मिल गया, बस | वह नशेड़ी भी कुछ कम नहीं था | अपने मोवाइल के लिये कुछ सौ
रुपये दिये जाने का हठ मुझे आपे से बाहर कर रहा था | मैं तो यों ही लुट चुका था |
मैने एक पैसा भी एने से मना कर दिया था | बेटे ने कुछ भी देने से मना कर दिया था |
इतनी देर में उस नशेड़ी के द्वारा बताए गये
मो. नम्बर पर फोन कर के उस के घर वालों को बुला लिया गया था | फोन करने के लगभग
आधे घंटे के बाद उस की पत्नी, बहिन और भानजी आयीं | उस की घरवाली ने आते ही अपने
आदमी को लानत मलामत भेजना प्रारम्भ कर दिया-“साहब एक पैसा नहीं देता है मुझे या
बच्चों को सब चरस, स्मैक या शराब-अफ़ीम में चला जाता है | हर समय नशा किये रहते हैं
ये | कई तरह के नशे एक साथ करते हैं |” उस आधे पागल नशेड़ी की मोबाइल मुझ से वसूलने
की ज़िद इस कथन से काफ़ी कमज़ोर पड़ गयी | हाँ, एक बात और ! नशेड़ी ने पुइलिस वालों के
पूछने पर अपने मोबाइल का नम्बर यहाँ भी नहीं बता पाया | बार बार वही आठ अंकों का
नम्बर बता पाया | मज़े की बात तो यह कि उस के आगत परिजन भी यह नम्बर नहीं बता पाये
| आखिरकार पुलिसिया सब इन्स्पेक्टर ने कहा- “स्सा--, बहुत पिटेगा ! चारसौबीस, चल
तुझे स्मैक और अफ़ीम के केस में सात आठ साल तक जेल की हवा खिला ही दूं !!”
दीवान नीरज सिंह के बुरी
तरह फटकारने पर नशेड़ी की बहिन व पत्नी ने उसे जो धिक्कारा तो वह टूट गया | उसे कई
वर्ष की जेल का डर हो गया | दीवान जी ने अन्त में मेरे बेटे से पूछ कर यह तय किया
कि मैं अपने सामान के खोने की शिकायत न करूँ और वह अपने मोबाइल के लिये अपनी
शिकायत न करे | मैने उस के द्वारा पहल करने पर ज़ोर दिया और दोनो ओर से एक ही कागज़
पर कार्यवाही हो गई उ उस पाजी नशेड़ी को दुत्कार कर भगा दिया गया | मुझे अगली वापसी
की ट्रेन की प्रतीक्षा में स सम्मान बैठा लिया गया | नतीज़ा ठन ठन गोपाल ! नौ दिन
चले अढाई कोस !!
अन्त में मेरे हाई
स्कूल-प्रमाणपत्र और साहित्यिक सम्मान-पत्रों और
सामान सहित एक बैग के खो जाने की सूचना उस थाने में पावती ले कर देने का
परामर्श दिया दीवान जी ने | बाद में दो पंक्तियाँ लिख कर उसे यह कह कर निरस्त कर
दिया कि सिकंदाराराव स्टेशन जी. आर. पी. थाना हाथरस सिटी के कार्य-परिसर में नहीं
आता है | एक सूचना-पत्र गी. आर. पी. थाना कासगंज के थाना-इंचार्ज्म के नाम लिखा कर
वहाँ पावती लेने के लिये मुझे प्रेरित किया दीवान
नीरज सिंह ने और अपना मोबाइल नम्बर किसी कठिनाई के आने पर संपर्क करने हेतु दे
दिया | रात्रि दस बजे के लगभग कासगंज को बापसी की ट्रेन आने पर सम्मान सहित दीवान
नीरज सिंह मेरा सामान अपने हाथ में ले कर ट्रेन के एक डिब्बे में एक सीट पर बैठा
आये और टिकिट की कोई परवाह न करने का परामर्श दिया और बताया कि कोई भी चेंकिंग करे
तो मैं उन का नाम बता दूं | टिकिट लेने का समय ही नहीं था |
मैं बुझे मन से हताश लौटा हुआ
बैठ कर कासगंज बारह बजे रात के करीब पहुँचा | अभी और टक्करें खानी थीं | भारी
ब्रीफकेस ट्राली के पहियों पर लुढ़का कर पूछता पाछता, भटकता थकता जी. आर. पी.-थाने
के पास पहुँचा तो वहाँ अजब ही दास्तान थी | एक अच्छी भली उभरे पेट वाली तंदुरुस्ती
वाले खाकी पैंट और बनियान में बैठे थे | उन की ओर मुझे उंगालियोन के संकेतों
से ठेल दिया गया था | बड़े भद्दे रौब से उन
सज्जन ने मुझ से पूछा, नहीं नहीं, धमकाया-
‘’क्या है ?-प्रश्न दागा गया मेरे कानों में |
“दरोगा जी कहाँ मिलेंगे ?” प्रश्न के ऊपर प्रश्न दागा मैने भी | बात थोड़ी
बढ़ाना चाहती थी | मैने अपनी पहले से ही निकाल कर हाथों में पकड़ी शिकायत दिखा कर कह
दिया-“मेरा सामान सिकंदाराराव स्टेशन पर गुम हो गया | यह सूचना पत्र
प्राप्त कर लीजिये | “
“क्यों, मैं कैसे मान लूँ कि आप का
सामान गुम् हो गया ?’
“‘झूठ बोलने का मेरे लिये कोई कारण नहीं |”
“झूठ बोलने का कोई कारण नहीं होता, कोई भी झूठ बोंल सकता है |“
‘देखिये, मैने अपने सूचना-आवेदन में किसी धन-सम्पदा का ज़िक्र नहीं किया है और
न ही किसी कीमती सामान् का ही हवाला दिया है |”
‘जाइये, पहले शपथ-पत्र बनवा कर लाइए |”
“यह तो काम न होने देने वाली बात हो गयी | अब मैं रात को बारह बजे के बाद कहाँ से आप की यह माँग पूरी करूँ ?’
‘ठीक है आप अपना नाम-पता-मोबाइल-नम्बर नोट करा दीजिये | सामान मिलजाने पर
सूचना दे दी जायेगी |” मैं तो तुला बैठा था अपना काम करवाने को | जला बैठा था पीड़ा
की आग से | मैं चुप नहीं हुआ |-
“आप मेरी उम्र का भी लिहाज़ नहीं कर रहे हैं | मेरी मज़बूरी भी नहीं समझ रहे
हैं | मेरे दस्तावेज़ गये हैं, हाईस्कूल
का सर्टीफिकेट खोया है | जीवन भर का सम्मान खोया है | हाथरस वाले यहाँ भेज
रहे हैं और आप मेरी सुन नहीं रहे हैं |’
“हाथरस सिटी वालों ने क्यों नहीं आप की अर्जी ली ?”
“यह मैं क्या बता सकता हूँ | उन्होंने सिकंदराराव को अपने क्षेत्र से बाहर
बताया | इस में मैं क्या कर सकता था ?”
“रिपोर्ट अपराध की रिपोर्ट करने का भी कोई क्षेत्र होता है क्या ? माँ लो कोई
बीमार है तो क्या डॉक्टर यह कहेगा कि यह आप मेरे क्षेत्र के नहीं ? “
उस अफसर का कुतर्क अटपटा और हास्यास्पद किन्तु वजनी था | मुझे कुछ उत्तर सूझ
नहीं रहा था | मुझे उस पर क्रोध आ रहा था | मेरे धीरज की परिक्षा थी |
“मैं यह कैसे कह सकता हूँ ? अगर आप कागज़ रिस्र्र्व नहीं करेंगे तो मैं आगे की
कार्यवाही कैसे करूँगा ? आप को नहीं करना हो तो न करें पर ऐसी कठोर बातें
न करें निराश कर रहे हैं हैं आप |”
खैर ! न जाने क्या समझ में आया दुनियाँ में खुद को सब से ज्यादह काबिल समझाने
वाले उस अफसर को | उस ने अपने सहायक को कागज़ पकड़ाया-
“लों, मोहर लगा कर ले आओ, इन्हें दे दो |” वह गया और मोहर लगा के ले
आया | कागज़ मुझे पकड़ा दिया जैसे भिखारी को मिन्नत खुशामद के बाद भीख दी जाती
है | अन्त में वह अफसर बोला-“अब तो हो गया आप का काम ! अब जाइए |“
बेरुखी-मिलनसारिता की अजीब खामी थी उस में | मैं चला आया और चार घंटे इधर उधर चहल
कदमी करता, बेंचों पर बैठता मच्छरों से बचता बचाता साढ़े चार बजे ट्रेन की एक सीट
पर आराम से बैठ गया | सामन की चिन्ता में नींद से लड़ता पीलीभीत स्टेशन पूर्वान्ह
दस बजे और साढ़े दस बजे अपने घर आ गया | सब
कुछ खो कर घर को लौटे !
घर पर पन्द्रह अक्तूबर को आया |
दो दिन डट कर आराम किया | राहुल, मेरे बेटे ने मुझे परामर्श दिया कि किसी लोकप्रिय
समाचारपत्र में सूचना दे कर पत्रजातों के दुरुपयोग की संभावना से सुरक्षा कर लें |
दिनाँक १७ अक्तूबर को दैनिकजागरण में पैंतीस शब्दों में सूचना दे दी गयी जो अगले
दिन १८ अक्तूबर को छाप गयी | कटिंग
सुरक्षित कर ली गयी | मैं इस कठोर प्रहार से कैसे बच पाया भला ? दिल की बीमारी –एंजाइना,
प्रोस्टेट आदि कई रोगों से ग्रस्त एक ६६ वर्ष का वृद्ध !
बात यह है कि मन में मेरे एक
‘न्यायाधीश’ हर समाया प्राय: जागृत रहता है | शायद मैं उन सम्मानों के योग्य नहीं होऊंगा
| ‘उसकी ‘न्याय व्यवस्था’ सर्वोपरि है | ‘सुप्रीम कोर्ट’ के फैसले के ऊपर कोई अपना
निर्णय थोप सके इतनी हिमाकत कैसे कर सकता है उस का यह तुच्छ दास ! एक जीवन-रक्षक
मंत्र मेरे काम आ गया-श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरे अध्याय के अड़तीसवें श्लोक का भगवान
श्रीकृष्ण का यह आदेश—
‘सुखदुखे समे कृत्वा लाभालाभौ
जयाजयौ |
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं
पापमवाप्स्यसि ||’
श्रीरामचरितमानस का यह आधा दोहा मेरे जीवन का आधार है—
‘लाभ-हानि,जीवन-मरण, यश-अपयश विधि-हाथ |’
सच तो यह ही होगा कि शायद मैं या तो उन सम्मान-पत्रों के योग्य नहीं होऊंगा या
फिर मुझे वे सम्मान पूर्वक नहीं दिये गये होंगे ! मेरे कर्मों को मेरा वह
सदा-मित्र-प्राण-प्यारा नहीं जानता होगा क्या !!अपना कर्त्तव्य पूरा किया और अब
मैं आप सब के बीच सामान्य हूँ | बस ! आप का प्यार इन सब से ऊपर है, यही मिलता रहे-मन
से प्यार !!
दोस्त भारत की पुलिस भी भारतीय सरकार की तरह ऊपर से लोक लुभाऊ ,जनकल्याणकारी अन्दर से लोक -खिझावन है। आप ससम्मान वापस आये इसीलिए यहाँ कोई पुलिस के पचड़े में फंसता नहीं है और यहाँ अमरीका में कोई पुलिस का अपना पचड़ा नहीं पुलिस आपके सम्मान की रक्षक है। अगर आप अगली गाड़ी से नियत दूरी रखके सड़क पर अपना वाहन नहीं चला रहे हैं। आपकी गाडी रोक के पुलिस अफसर (पुलिस वाला नहीं )पहले मौसम की बात करेगा -सर !वेदर इस गुड। सी द कलर्स आफ फाल। बट सर !यु वर नाट कीपिंग द राईट डिस्टेन्स फ्रॉम द व्हीकल अहेड आफ यु।
जवाब देंहटाएंप्लीज़ बी केअर्फ़ुल नेक्स्ट टाईम। हेव ए ग्रेट डे।
ईश्वर करे, भारत भी पुलिस की इस समर्पित सेवा का लाभ उठा सके !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा वृतांत
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