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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

मंगल-गीत (३)बिगड़ी दशा सुधारे |


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दु:ख मत करें प्रवेश किसी भारतवासी के द्वारे |
’समय’ हमारे भारत माँ की बिगड़ी दशा सुधारे ||
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चन्दा बाँटे चन्दा बाँटे धुली चाँदनी मानो चाँदी पिघली |
बरसातों में किसी चमन को अब न उजाड़े बिजली ||
अमावसों में जलें दीप से झिलमिल झिलमिल तारे |
’समय’ हमारे भारत माँ की बिगड़ी दशा सुधारे ||१||

नदियाँ इसकी नित जल बाँटें, रहे धरा मत सूखी |
‘मनोभावना’ किसी ह्रदय में रहे न नीरस रूखी ||
युग युग तक सागर मेरे भारत के चरण पखारे |
’समय’ हमारे भारत माँ की बिगड़ी दशा सुधारे ||२||

असमय में ‘बरसात‘ बाढ़ से नाश के खेल न खेले |
या ‘अकाल’ का, ‘अनावृष्टि’ का दर्द न कोई झेले ||
अन्न-द रस ‘अमृत’ बरसाएँ, बस बादल कजरारे |
’समय’ हमारे भारत माँ की बिगड़ी दशा सुधारे ||३||

‘शरद’ सभी तालों में सुन्दर कमल-“प्रसून” खिलाये |
‘बसन्त’ उद्यानों में सुमनों के मन को महकाये ||
नाचें ‘तितली’ मोहक तान भरें ‘भँवरे’ मतवारे |
’समय’ हमारे भारत माँ की बिगड़ी दशा सुधारे ||४||
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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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