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दशा देश की बिगड़ी है जो, आकर ‘नियति’ सुधारे |
स्वर पहुँचें, ईश्वर तक गूँजें, ‘मंगल-गीत’ हमारे ||
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मत माफियों से मिले देश के किसी
प्रान्त की सत्ता |
और ‘सियासत’ बने जुवे का नहीं ‘ताश का
पत्ता’ ||
‘कूट-नीति बेईमानों की’ मत ‘ईमान’ को मारे |
स्वर पहुँचें, ईश्वर तक गूँजें, ‘मंगल-गीत’ हमारे ||१||
कहीं कोई ‘समुदाय’, ‘धर्म’ का ‘झूठा राग’ न गाये |
मत जनता में ‘स्म्प्रदायवादों’ की ‘आग’ लगाये ||
‘नया जागरण’, प्रजातंत्र’ का विकृत रूप सँवारे |
स्वर पहुँचें, ईश्वर तक गूँजें, ‘मंगल-गीत’ हमारे ||२||
‘प्रान्तवाद’
की ‘क्षेत्रवाद’ की आँच कहीं मत आये |
‘जातिवाद
का रोग’ किसी के मन को अब न सताये ||
‘अखण्डता का चमन अमन का’, कहीं न कोई उजारे |
स्वर पहुँचें, ईश्वर तक गूँजें, ‘मंगल-गीत’ हमारे ||३||
रहा ‘गुलामी के रोगों’ से, पीड़ित ‘वतन का तन’ है |
त्यागी वैरागी वीरों ने, ‘मुक्ति’ का किया जतन है ||
अब ‘अनीति का नाग’ पातकी, इस में ‘विष’
न उतारे |
स्वर पहुँचें, ईश्वर तक गूँजें, ‘मंगल-गीत’ हमारे ||४||
“प्रसून” सारे रंग विरंगे, एक बाग में खिलते |
अलग अलग ‘गन्धों के सुख’ हैं, इन से सब को मिलते ||
‘भेद-भाव का शूकर’, सुमन-पादपों को न उखारे |
स्वर पहुँचें, ईश्वर तक गूँजें, ‘मंगल-गीत’ हमारे ||५||
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बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! बहुत शीघ्र ही मंगल-गीतों की श्रृंखला का समापन कर के दूसरी ज्वलंत समस्या मूलक रचना-माला आप की सेवा मे ले कर उपस्थित हूंगे |
हटाएंबहुत सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!