आज लंबी अवधि के बाद इंटरनेट की सुविधा पुन; उपलब्ध होने पर उपस्थित हूँ | एक ' कपट-साधु' की काली करतूतों के समाचारों से मन में उठी व्यथा पेश है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )
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जय कन्हैया लाल की !
जय कन्हैया लाल की !!
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‘पत्थर-दिल’, ‘पत्थर’ को छप्पन-भोग
लगाते हैं |
भूखे नंगे लोगों को, तिल-तिल तरसाते
हैं ||
बन कर ‘कान्हां’, ‘चैन की वंशी’ रोज़
बजाते हैं |
कोई ‘सुदामा’ द्वारे आये, उसे भगाते
हैं ||
‘सारी दुनियाँ’
है बलिहारी, इन की ‘उल्टी
चाल’ की |
जय कन्हैया लाल की !
जय कन्हैया लाल की !!१!!
‘तिलक वैष्णवी’ माथे, छुप कर मदिरा पीते हैं |
‘कण्ठी-माला’ पहन, ‘ऐश’ में डूबे जीते हैं ||
सिर पर ‘बोझ पोथियों का, ‘ज्ञान से रीते हैं |
इन मन में लोभ से ‘तचते, जले पलीते’ हैं |
‘भजन-ध्यान’ में
बैठे लेकिन, चिन्ता इन को ‘माल’ की |
जय कन्हैया लाल की !
जय कन्हैया लाल की !!२!!
देते हैं ‘उपदेश’ सभा में, ‘प्रवचन’ करते हैं |
‘कथा’ वांचते, ‘रकम’ ऐंठतें,
‘जेबें’ भरते हैं ||
‘रूप की मछली’ देख के, ‘बगुले’ उस
पर मरते हैं |
अवसर देख के ‘शील’ लूटते, तनिक न
डरते हैं ||
‘धर्मों की
गद्दी’ पर बैठे, घोर ‘नारकी-पातकी’ |
जय कन्हैया लाल की !
जय कन्हैया लाल की !!३!!
महाप्रभू चैतन्यदेव की ‘बात’ न इन में है |
ज्ञानेश्वर का ज्ञान न, ‘प्रसिद्धि’, पर जन-जन में है ||
‘मुहँ में राम, बगल में छुरियाँ’, लालच मन में है |
‘मन्त्रों’ का उच्चारण करते, ध्यान तो ‘धन’ में है ||
भूल गये अपने
‘पुरखों’ को देखो ये ‘कुल-घालकी’ |
जय कन्हैया लाल की !
जय कन्हैया लाल की !!४!!
हम समझे बेदाग़
उन्हें जो मैले ‘दागों’ में |
बनते हैं
‘वैरागी’ लेकिन डूबे ‘रागों’ में ||
‘कपट-“प्रसून”
खिले हैं इन के ‘बागों में |
लगते हैं
‘सरनाम’, विषैले ‘पाप के नागों’ में ||
दिल से ‘काले
कौवे’ जिन को, काया मिली ‘मराल’ की |
जय कन्हैया लाल की !
जय कन्हैया लाल की !!५!!
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इनके लिए आपनें धर्मों की गद्दी’ पर बैठे, घोर ‘नारकी-पातकी सही कहा है ! आज का संत समाज अपनें कर्तव्यों से पूर्णतया विमुख हो चूका है !!
जवाब देंहटाएंजय कन्हैया लाल की !
जवाब देंहटाएंआक्रोश साझा करने के लिए आभार-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें- आदरणीय-
धर्म के ठेकेदारों ने धर्म को अब एक कंचन- कामिनी का फलता फूलता व्यवसाय बना लिया लिया है .उसी सच को उकेरती सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंlatest post आभार !
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