मित्रों! सभी को स्वतंत्रता-पर्व का प्रभात शुभ ! 'मंगल-गीत' श्रृंखला में आज कवि की भावुकता को मेरा मन न रोक सका और अपने अंतर्गत विद्रोह को कामनाओं में प्रस्तुत किया है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार उद्धृत )
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पुन: ‘विजय का गरिमा मय सुन्दर इतिहास’ रचायें |
‘आज़ादी के रखवाले’ जागें औ इसे बचायें ||
देश किया
आज़ाद जिन्होंने, उन को याद करें हम |
बेदम
‘जोश’ कहीं पर हो यदि, उस में ‘प्राण’ भरें हम ||
सच्चे मन
से चलो तिरंगा सब मिल कर फहरायें |
चलो चलें
हम आजादी का पावन पर्व मनायें ||
गाँवों-नगरों की सब गालियाँ, लगा
के हृदय सजायें |
‘आज़ादी के रखवाले’ जागें औ इसे
बचायें ||१||
‘उत्तर-
पश्चिम की सीमाओं’ पर खतरा मँडराया |
बार बार
की 'घात', शत्रु को, हमने क्यों न भगाया ??
चुप रह कर
अपमान सहन करना तो ‘शान्ति’ नहीं है |
इसे
‘अहिंसा’ कहें, कहो तो क्या यह ‘भ्रान्ति’ नहीं है ??
सहन करें हम कैसे, ‘माँ’ को
‘शत्रु’ चोट पहुँचायें ?
‘आज़ादी’ के ‘रखवाले’ जागें औ इसे
बचायें ||२||
‘हिंसा और अहिंसा की परिभाषा’, ढंग से समझें |
‘कायरता के भाव’ लिसी के मन में कहीं न उपजें ||
पड़े ज़रूरत, तन-मन-धन हम, मातृभूमि पर वारें |
मांगे ‘देश’, ‘सभी कुछ’ इस पर, अपना तुरत निसारें ||
‘प्राण’ निछावर कने में हम, तनिक
नहीं सकुचायें |
‘आज़ादी’ के ‘रखवाले’ जागें औ इसे
बचायें ||३||
‘बाड़ी’ में ‘आक्रामक शूकर-महिष’ न
अब घुस पायें |
बाहर के ‘कुछ नाग विषैले’, अब न
यहाँ घुस पायें ||
और ‘भीतरी राजनीति’ में, ‘घालमेल’
मत उलझें |
बिना ‘बाहरी दखलन्दाज़ी’, ‘सारे
किस्से’ सुलझें ||
‘कोई विदेशी’ यहाँ किसी को
‘उँगली’ पर न नाचायें |
‘आज़ादी’ के ‘रखवाले’ जागें औ इसे
बचायें ||४||
त्याग और
‘श्रम-जल’ से सींचें, ‘जीवन की फुलवारी’ |
‘हरी-भरी’
हो ‘सुख-सुविधाओं’ से जिसकी ‘हर क्यारी’ ||
इस फुलवारी
की ‘शोभा’, ‘गद्दार’ न कहीं मिटायें |
‘आशाओं के
“प्रसून” महकें, ‘मोहक गन्ध’ लुटायें ||
टूटे ‘डाली’ पामर-धूर्त्त, इतना
तो न लचायें |
‘आज़ादी’ के ‘रखवाले’ जागें औ इसे
बचायें ||५||
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बहुत सुन्दर , सटीक रचना
जवाब देंहटाएंस्वतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
latest os मैं हूँ भारतवासी।
latest post नेता उवाच !!!
नेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
जवाब देंहटाएंभाद्र पट के आगमन की वधाई !!