============== मन्दिर, मस्ज़िद, दरगाहें हों, या गिरजा, गुरूद्वारे |
‘इंसानियत के मंत्र-आयतें’, गूँजें साँझ- सकारे ||
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कोई विदेशी मज़हब की अब करे न यहाँ दलाली
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यहाँ दिलों में रहे सलामत,
‘निरपेक्षता की लाली’ ||
एक साथ हम सभी सुखों को सरे मिल कर
बाँटें-
दुःख का करें सामना हँस कर, मिल जुल कर हम सारे |
‘इंसानियत के मंत्र-आयतें’, गूँजें साँझ- सकारे ||१||
किसी गली में हों न कहीं भी, ‘अनचाहे सन्नाटे’ |
दुःख हों लेकिन उगें न उन में,
‘कुंठाओं के काँटे’ ||
अभाव से पीड़ित लोगों से, सुखी न मुहँ को मोड़ें-
रहें सुखों की झोली भरते, देश के लोग हमारे |
‘इंसानियत के मंत्र-आयतें’, गूँजें साँझ- सकारे ||२||
सब का अपने वेतन से ही, अब हो
यहाँ गुजारा
‘घूस’ और ‘बेईमानी’ अब, यहाँ से
करें किनारा ||
मत ‘दहेज़’ से पीड़ित हो कर, जीवन
खोये नारी-
सारा भारत कमर को कस के, ‘अनाचार’ को मारे |
‘इंसानियत के मंत्र-आयतें’, गूँजें साँझ- सकारे ||३||
राम करे भारत में सुधरें, जमाखोर व्यापारी |
कहीं सताये भूख-प्यास की किसी को मत लाचारी ||
‘महँगाई की आग’ से झुलसें मत “प्रसून” आशा के-
मत कोई ‘भ्रष्टाचारों की भट्टी’ यहाँ पजारे |
‘इंसानियत के मंत्र-आयतें’, गूँजें साँझ- सकारे ||४||
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