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गुरुवार, 16 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (१) वासाना-कारा (xi) बाजों के षडयन्त्र |


स्त्री  में ममता उसकी भावुकता के कारण है |उसे यह कल्याणकारी गुण 'दैवी प्रकृति' से उपहार में मिला है | नर-पिशाच  इस भावुकता का दुरुपयोग अपनी हविश के लिये उसकी  प्रवृत्ति को छल कपट पूर्वक  उभार कर उत्तेजित करके 
करता है | यद्यपि  ऐसा सदैव नहीं होता पर जब भी होता है भयानक रूप धारण 
कर लेता है | आगे कभी समाधान बताया जाएगा | उसे झूठे प्रेम में फांसने या 
 'कृत्रिम  पावनता' की  आड़ में छुपी 'अपावन  पैशाचिक प्रवृत्ति'  बहुत घातक रूप ले लेती है कभी कभी ||
(कुछ चित्र'गूगल-खोज'तथा कुछ कैमरे से) 

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क्यों ‘समाज’ सुनता नहीं, उसकी ‘करुण पुकार’ |
‘पौरुष के षडयन्त्र’  का,  ‘नारी’  हुई  शिकार’ ||
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नारी सब की माँ बनी, निर्धन हो या भूप |
यों  स्त्री  संसार  में,  होंती ‘परम अनूप’ ||
उस नारी पर हो  रहे, कितने ‘ज़ुल्म’ आज |
नारी  ‘चिड़िया’ की तरह, पुरुष कई है ‘बाज’ ||
अनाचार, अपमान का,  नारी  सहती  ‘भार’ |
‘पौरुष के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’ हुई शिकार’ ||१||


स्त्री  की ‘भावुक प्रकृति’ को कुरेद कुछ लोग |
‘कामुकता’ में बदल कर, करते ‘सुख’ का भोग ||
‘मिथ्या प्रेम-कुजाल’  में,  ‘भोली  मैना’ फांस |
‘शील-सुभग पर’  नोचने, के  करते  ‘आयास’ ||
‘चन्दन’ में  ज्यों  ‘आग’ का, हो जाता ‘संचार’ |
'पौरुष  के  षडयन्त्र’  का, ‘नारी’  हुई  शिकार’ ||२||




‘यौवन का रस ‘ चूस कर, ‘गुठली’  देते  फेंक |
यों  ‘परित्यक्ता नारियाँ’, सहतीं  ‘दर्द’ अनेक ||
‘दुःख की बिजली’ से  जला, ‘आशाओं का बाग’ |
‘पछतावे  के ताप’  से, जल  जाता  ‘अनुराग’ ||
‘यौवन-रेशम’  में  गरम,   भर  जाते  ‘अंगार’ |
 ‘पौरुष के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’  हुई  शिकार’ ||३||
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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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