स्त्री में ममता उसकी भावुकता के कारण है |उसे यह कल्याणकारी गुण 'दैवी प्रकृति' से उपहार में मिला है | नर-पिशाच इस भावुकता का दुरुपयोग अपनी हविश के लिये उसकी प्रवृत्ति को छल कपट पूर्वक उभार कर उत्तेजित करके
करता है | यद्यपि ऐसा सदैव नहीं होता पर जब भी होता है भयानक रूप धारण
कर लेता है | आगे कभी समाधान बताया जाएगा | उसे झूठे प्रेम में फांसने या
'कृत्रिम पावनता' की आड़ में छुपी 'अपावन पैशाचिक प्रवृत्ति' बहुत घातक रूप ले लेती है कभी कभी ||
(कुछ चित्र'गूगल-खोज'तथा कुछ कैमरे से)
(कुछ चित्र'गूगल-खोज'तथा कुछ कैमरे से)
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क्यों
‘समाज’ सुनता नहीं, उसकी ‘करुण पुकार’ |
‘पौरुष
के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’
हुई शिकार’ ||
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नारी सब की माँ बनी, निर्धन हो या भूप
|
यों स्त्री संसार में, होंती ‘परम अनूप’ ||
यों स्त्री संसार में, होंती ‘परम अनूप’ ||
उस नारी पर हो रहे, कितने ‘ज़ुल्म’ आज |
नारी ‘चिड़िया’ की
तरह, पुरुष कई है ‘बाज’ ||
अनाचार,
अपमान का, नारी सहती
‘भार’ |
‘पौरुष
के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’ हुई शिकार’ ||१||
स्त्री की ‘भावुक
प्रकृति’ को कुरेद कुछ लोग |
‘कामुकता’ में बदल कर, करते ‘सुख’ का भोग ||
‘कामुकता’ में बदल कर, करते ‘सुख’ का भोग ||
‘मिथ्या प्रेम-कुजाल’
में, ‘भोली मैना’ फांस |
‘शील-सुभग पर’ नोचने, के करते ‘आयास’ ||
‘चन्दन’ में ज्यों ‘आग’ का, हो जाता ‘संचार’ |‘
'पौरुष के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’ हुई शिकार’ ||२||
‘शील-सुभग पर’ नोचने, के करते ‘आयास’ ||
‘चन्दन’ में ज्यों ‘आग’ का, हो जाता ‘संचार’ |‘
'पौरुष के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’ हुई शिकार’ ||२||
‘यौवन
का रस ‘ चूस कर, ‘गुठली’ देते फेंक |
यों ‘परित्यक्ता नारियाँ’, सहतीं ‘दर्द’ अनेक ||
‘दुःख
की बिजली’ से जला, ‘आशाओं का बाग’ |
‘पछतावे के ताप’
से, जल जाता ‘अनुराग’ ||
‘यौवन-रेशम’ में
गरम, भर जाते
‘अंगार’ |
‘पौरुष के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’ हुई शिकार’ ||३||
‘पौरुष के षडयन्त्र’ का, ‘नारी’ हुई शिकार’ ||३||
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