सर्ग का यह दूसरा उपसर्ग 'दहेज़' आप की सेवा में प्रस्तुत है | नारी उत्पीडन का यह रूप शायद कभी समाप्त न हो क्यों कि घूस की ही तरह ही यह भी आज कल की गुप्त(भूमि-गत) संस्कृति में रच बस गया है | यह ऐसा अपराध है जिसे करने वाले
अपने कद के अनुपात में कर रहे हैं और मानते भी नहीं | इसे अपनी शान में शुमार करते हैं |बेटी के 'प्रेम-मोह' से विवश माता पिता अपनी बेटी की दुर्दशा कैसे देखें भला ?
आये दिन असमर्थ माँ बाप की बेटियों की दहेज़-ह्त्या या उस के प्रयास समाचार पढाने =सुनने को मिल जाते हैं | ओस रचना में दहेज़ का पशाचिक वीभत्स एवं भयानक रूप सामने ररखा गया है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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उन्मादी हो कर रहा, ‘रक्त-पान’ कर नाच |
है ‘दहेज़ के लोभ’ से, मानव बना ‘पिशाच’ ||
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‘दहेज़-कंटक-पाश’
ने, लिया है ‘प्रेम’
लपेट |
भोली भाली बेटियाँ, चढ़ी हैं इसकी भेंट
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जला दिया, विष दे दिया, डाल गले में फांस |
मार रहे ‘कुल-वधू’ को,जेठ,
ससुर, पति, सास ||
‘मनुष्यता’ पर आ रही,
देखो ‘मैली आँच’ |
है ‘दहेज़ के लोभ’ से, मानव बना ‘पिशाच’ ||१||
‘वित्त्वाद के पत्थरों’, की पड़ती यों
चोट |
कोमल ‘कोंपल’ प्रेम
की, पाने लगी कचोट ||
‘प्रीति की काया’ खुरचते, निठुर ‘लोभ-नाखून’ |
दोष-रहित ‘नारी-सु-तन’, का यों बहा है खून ||
टूटी बिखरी ‘सभ्यता’,
जैसे ‘कच्चा काँच’ |
है ‘दहेज़ के लोभ’ से, मानव बना ‘पिशाच’ ||२||
‘दहेज़-दानव’
वृहत् तन, वृहत् जीभ औ दाँत |
खा कर भी
भूखा रहा, भारी इस की ‘आँत’ ||
‘होंठ’ रक्त
से लाल हैं, पैनी
खूनी ‘दाढ़’ |
विवश नारियाँ मारता, पीता ‘रक्त
प्रगाढ़’ ||
‘प्रेम-ग्रन्थ’ तज कर
कुटिल, ‘घृणा-कु-पुस्तक’ जाँच |
है ‘दहेज़ के लोभ’ से, मानव बना ‘पिशाच’ ||३||
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आज सब के विचार एक है ...।
जवाब देंहटाएंव्यक्त करने वाले शब्द अलग-अलग
लेकिन जिसके कारण कुछ फर्क पड़ सकता
वो मरा पड़ा है
और हम लाचार पड़े हैं
देखते समय और क्या दिखाता है