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बुधवार, 22 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (२) दहेज़-दानव (v) पैशाचिक होम |


यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं |इन में से पैशाचिक यज्ञ सब से अनिष्टकारी व घिनौना होता है |अशुभ सामिग्री इस में हुती जाती है | अग्नि में जो कुछ हुत दें यज्ञ है | जैसा यज्ञ करें वैसा ही फल मिलेगा | नारी को जिन्दा जला कर क्या हम किसी शिव या शुभ शक्ति की कृपा की अपेक्षा कर सकते हैं | रचना में जलाते हुये सवाल हैं और उनके उत्तरों की और संकेत भी | सवालों के उत्तर स्वयम खोज कर इस सामाजिक समस्याओं का समाधान ढूँढ सकते हैं | (सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार}




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 ‘लोभ-वासना की मलिन, ज्वाला’ रहे पजार |
 जला रहे हो ‘प्रेम’ का,  क्यों ‘आधा संसार’ ??
 ?????????????????????????????????
 पूज  रहे  ‘नैवेद्य’ से, कभी जला कर धूप |
 जिस ‘देवी’ को आप हैं, नारी ‘उस’ का रूप ||
 ‘नारी-पूजा’ की जगह, किया है उस का होम |
 ‘धुयें’  से  मैले  हो  गये, ये ‘धरती’-‘व्योम’ ||
 ‘इस संस्कृति’ का किस तरह, अब होगा उद्धार |
 जला रहे हो ‘प्रेम’ का, क्यों ‘आधा संसार’ ??१??



क्या  नारी  के  बिना  नर,  सुखी और सम्पन्न ?
नहीं, वृथा  इस  के  बिना, ‘स्वर्ण-रत्न-धन-अन्न’ ||
ज़िन्दा ‘उस’ को जला कर,  किया जा रहा  ‘राख’ |
‘भारत की तहज़ीब’ की,  गिरने  लगी  है  ‘साख’ ||
‘जननी’ जन  कर  विश्व  में,  करती  है  ‘उद्धार’ |
जला रहे हो ‘प्रेम’  का,  क्यों  ‘आधा संसार’ ??२??


‘देवी-तन के होम’  से,  क्या प्रसन्न  है  ‘अग्नि’ ?
नहीं,  ‘देवता’  इस  तरह,   होता   है  उद्विग्न ||
यह ‘पैशाचिक यज्ञ’ तो,  करेगा  ‘युग’ का  ‘नाश’ ||
‘मानवता’  इस  ‘कर्म’  से,  होगी  बड़ी  निराश  ||
‘जग-जननी’ का तन  अरे,  तुम  क्यों  रहे पजार ?
जला रहे हो ‘प्रेम’  का,  क्यों  ‘आधा संसार’ ??३??
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1 टिप्पणी:

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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