iइस सर्ग में यह बताया है कि विकास की मीनार बहत ऊंची, चमक दमक वाली शानदार है किन्तु भीतर से खोखली इन आचरण निष्ठा (वफ़ा) आदि ठोसत्व के कारण बहुत कमज़ोर हैं | यानी विकास बनावटी है |
केवल भौतिक पादार्थिक (materialistic) विकास ही क्या विकास है जब कि आध्यात्मिक मानसिक सांस्कृतिक विकास में बनावटीपन है जो कि व्यवहारों में झलकता है | (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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केवल भौतिक पादार्थिक (materialistic) विकास ही क्या विकास है जब कि आध्यात्मिक मानसिक सांस्कृतिक विकास में बनावटीपन है जो कि व्यवहारों में झलकता है | (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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‘प्रगति की मीनारें’ उठीं, चलीं ‘गगन’ के पार |
क्यों यह नारी सह रही, है ज़ुल्मों की मार ??
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अनपढ़ ‘दहेज़’ माँगते, तनिक न आती लाज ||
‘भोली कलियाँ’ चढ़ गयीं, इस ‘दहेज़’ की भेंट |
‘कोमलता की लता’ का, हुआ है मटियामेट
||
हमने भरे हैं
‘स्नेह के, आँचल’ में ‘अंगार’
|
क्यों यह नारी सह रही, है ज़ुल्मों की मार ??१??
कभी ‘धर्म’ के नाम पर, पति को कह ‘परमेश’ |
‘पतिव्रता’ इस
को बना, देते अघोर क्लेश ||
'गृहिणी' का
‘संसर्ग’ तज, ‘वेश्या-गामी’ लोग |
‘गन्दी गालियाँ, ढूँढ कर, करते ‘तन’
का भोग ||
दबी दबी सहमी हुई, खो कर
निज ‘अधिकार’ |
क्यों यह नारी सह रही, है ज़ुल्मों की मार ??२??
‘कालगर्ल’ बन
वेश्या’ रही ‘बदन’
को बेच |
‘लज्जा -
रक्षक डोरियाँ’, रहे
‘अधर्मी’ खेंच ||
‘काम-भोग’ का
‘मूल धन’, ‘उत्पीडन का सूद’ |
‘काम - कला के
महाजन’, बसूलते ‘मरदूद’ ||
यों ‘जीवन की
विवशता’, सहती ‘यौनाचार |
क्यों यह नारी सह रही, है ज़ुल्मों की मार ??३??
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (24-05-2013) के गर्मी अपने पूरे यौवन पर है...चर्चा मंच-अंकः१२५४ पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'