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‘चन्दा सूरज’ की तरफ़, है इस का
‘अभियान’ | ‘प्रगति
के पँछी’ ने बहुत, ऊँची भरी
’उड़ान’
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भूल गया यह ‘बावला’, जल जायेंगे
‘पंख’ |
‘परों’
में इस के ‘पाप’ के, कितने छिपे ‘कलंक’ ||
‘खूनी
पंजे’ हैं तथा, खूनी इस की
‘चोंच’ |
‘चंगुल’
में इस ने लिया,
‘मानवता’ को दबोच ||
‘प्रगति’ नहीं यह ‘सिंधु’ में, ‘ज्वार’ काउठा ‘उफ़ान’ |
‘प्रगति के पँछी’ ने
बहुत, ऊँची भरी ’उड़ान’
||१||
‘समानता’
के लिये उफ़, इतना बढ़ा ‘जुनून’ |
‘हक़’ पाने के लिये यों, बहा रहे
हैं खून ||
‘इन्कलाब’
के नाम पर, यह ‘नफ़रत’ की आग’ |
उगल रहे हैं
‘अज़दहे’, हे ‘समाज’
तू जाग !!
‘समाधान’ के लिये अब, कर तू ‘यत्न-विधान’ |
‘प्रगति के पँछी’ ने बहुत, ऊँची भरी ’उड़ान’ ||२||
‘जलते हुये सवाल’ कुछ,
जला रहे ‘क़ानून’ |
इंसानों को गोलियों,
से देते हैं
भून ||
इन घटनाओं के
लिये, कौन है
जिम्मेदार |
जान न पाये
‘राज - पद’, ‘ऊँचे ओहदेदार’ ||
कोई बतलाये हमें,
करेगा कौन ‘निदान’ |
‘प्रगति के पँछी’ ने बहुत, ऊँची भरी
’उड़ान’
||३||
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