इस सर्ग में सारी रचनाएँ नयी हैं जो कि अविधा शब्द-शक्ति में रची गयी हैं| इन सभी रचनायें आज की वर्तमान परिस्थितियों को अपने आँचल में समेटे हुये हैं | आखिर यह खूनी खेल के क्या क्या कारण हो सकते हैं , इस की समीक्षा का प्रयास है | (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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====================== ‘चकाचौंध’
में हो
गये, ’नयन-पटल’ बेकार |
‘तेज़ रोशनी’ में
हुआ, है ‘अन्धा’
संसार ||
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‘चमक-दमक’ की होड़ में, धुँधली हुई है
‘प्रीति’ |
‘नायक’ दौलत से बिके, बिकी है महँगी
‘नीति’ ||
बंगलों ‘ए..सी. - भवन’ में,
बैठे हैं जो लोग
|
‘ऐश’ में डूबे
रच रहे, ‘विकास
के आयोग’ ||
‘आम आदमी’ के लिये, कहाँ उन के दिल में ‘प्यार’ |
‘तेज़ रोशनी’ में
हुआ, है ‘अन्धा’
संसार ||१||
‘हर भूखे’ को ‘रोटियाँ’, 'हाथ - हाथ’ को काम |
‘वादे’ झूठे हो
गये, ‘सोच’ हुई
नाकाम ||
‘युवा-शक्ति’ की क्या कहें, ‘कुण्ठित छुरी’-समान |
बिलकुल निष्फल हो
गया, उनका ‘सारा ज्ञान’ ||
थके हैं ढो कर ‘शीश’ पर, ‘उपाधियों
का भार’ |
‘तेज़ रोशनी’ में
हुआ, है ‘अन्धा’
संसार ||२||
‘प्रजा’ पूत
की भाँति है,
‘राजा’ जाये भूल |
‘उदर-पूर्त्ति’ के
लिये ही, टैक्स
करे वसूल ||
‘भरे पेट’
यदि बाप हो,
‘बेटा’ ‘खाली पेट’ |
‘ममता के सम्बन्ध’ का,
होगा ‘मटियामेट’ ||
‘मर्यादा’ तज पुत्र
भी, करता कभी
‘प्रहार’ |
‘तेज़ रोशनी’ में
हुआ, है ‘अन्धा’
संसार ||३||
सटीक और सार्थक रचना !
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