दहेज़ की आग में 'माँ की ममता' पिटा का प्यार जल गया | दहेज़ का लोभ माँ को इतना ममता हीन बना देता है कि अपने बेटे के प्यार और उसकी पसंद को भी नहीं देखता है | बेटा बहू को चाहता है तो चाहे , पर माँ बाप कोतो धन चाहिये नहीं तो मार देते हैं उस की प्रिया को निर्दयी लालची !!
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
===========
===============
जला
‘दहेज़ी आग’ में, है ‘नारी
का ओज’ |
आग
लगी है ‘झील’ में, झुलसे जले ‘सरोज’ ||
=============================
जले ‘कुमुदिनी
के
सुमन’,
हुआ है राख ‘पराग’ |
‘मधु’
जल कर कड़वा हुआ,
इतनी निर्दय ‘आग’
||
सास न ‘माता’
रह गयी, ससुर
नहीं है ‘बाप’ |
‘सुता-वधू
को
मार
कर, करते दोनों ‘पाप’
||
देश के
हर अखबार में, छपतीं खबरें रोज़’ |
‘आग’
लगी है
‘झील’ में, झुलसे जले ‘सरोज’ ||१||
जला
रहा है देश
को, ‘दहेज़ का संताप’
|
उगले
‘दैत्य’ ‘अग्नि-मुख’, जैसे ‘दाहक ताप’ ||
‘सुमन’ जले ‘कलियाँ’ जलीं, जले सुगढ़
दल-पात |
ज्यों ‘दावानल’ का हुआ, ‘सु-वन्’ में कभी निपात ||
नारी नारी
पर हुई, कैसे
भारी बोझ |
‘आग’
लगी है
‘झील’ में, झुलसे जले ‘सरोज’ ||२||
‘लता
प्रीति की’ कुल - वधू, किया उसी का दाह
| उस का प्रियतम
पुत्र निज, भरता ‘ठण्डी आह’ ||
थोड़े से
धन का किया,
मात-पिता ने लोभ |
अपने बेटे
को दिया, जीवन
भर का क्षोभ ||
बुझे ‘आग’
यह अब करो,
ऐसी ‘कोई खोज’ |
‘आग’
लगी है
‘झील’ में, झुलसे जले ‘सरोज’ ||३||
=========================
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें