ग्रन्थ-क्रम में प्रकाशित इस दोहा-गीत की विषय-वस्तु के स्रोत समाचारपत्रों के समाचार, आये दिन की जन-श्रुतियाँ,किम्वदंतियां और पारस्परिक चर्चायें या यदा कडा दृष्टिगत घटनाये और सिनेमा-धारावाहिक हैं | 'भारत-पर्यटन' से मुझे सब से सहयोग मिला | इस प्रकार की घटनाओं के चित्रण का प्राप्त करना दुरूह है |
(सारे चित्र'गूगल-खोज'से साभार)
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‘जन-बल’,‘धन-बल’, ‘राज-बल’, की हो गयीं शिकार |
नारी ’पशुता’
से दबी, विवश
‘अर्द्ध संसार’ ||
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‘मुस्तंडे - गुण्डे’
कई, कई ‘कु – धर्म - महन्त’ |
पाखण्डों
का है नहीं,
जिनके कोई अन्त ||
निसन्तान कुछ नारियाँ, फँस
कर इनके ‘जाल’ |
सम्मोहित
तन ‘सौंपतीं’, होतीं
‘पूत-निहाल’ ||
ढोंगों के
ऐसे खुले, ‘तन्त्र – मन्त्र - बाज़ार’ |
नारी ’पशुता’ से
दबी, विवश ‘अर्द्ध
संसार’ ||१||
‘झूठे वादों’
में फँसीं, कुछ
‘धनिकों के जाल’ |
भोली कई किशोरियाँ,
खोतीं ‘लाज-प्रवाल’ ||
कहते ‘बिना
दहेज़’ के, करेंगे तुम से करें विवाह |
फिर धोखा दे
छोडते, पूरी कर के
‘चाह’ ||
निर्धन पिता
की बेटियाँ, सहतीं
‘अत्याचार’ |
नारी ’पशुता’ से
दबी, विवश ‘अर्द्ध
संसार’ ||२||
कल चौराहे
पर लुटी, ‘कुल-ललना’
की ‘लाज’ |
जैसे किसी
‘कबूतरी’, के ‘पर’
नोचे ‘बाज’ ||
‘तितली’ को ज्यों
‘छिपकली’, निर्दय रखे दबोच |
या ‘गुलाब’
की ‘पंखुड़ी’, ‘निठुर पवन’ ले नोच ||
‘धूर्त दरिन्दे
काम के’, करते
‘अत्याचार’ |
नारी ’पशुता’ से
दबी, विवश ‘अर्द्ध
संसार’ ||३||
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बहुत सुन्दर सचित्र सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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आपकी रचनाए अप्रतिम है... सटीक है....यथार्थ है.... आपको नमन .....
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