इस नए सर्ग में नारी उत्पीडन के अनेक कारणों में से अभावग्रस्त परिवार में नशाखोरी की ओर संकेत है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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कुछ ‘पश्चिम की सभ्यता’, कुछ ‘अभाव का भार’ |
फँसा ‘वासना -
जाल’ में, है
‘आधा संसार’ ||
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महा
नगर में
देखिये, अजब निराली
शान |
सस्ती महँगी
बिक रही, ‘नारी - तन की आन’ ||
तन के
लोलुप हैं कई,
‘काम के प्यासे’ लोग |
‘रूप की
सुरा’ खरीद कर,
करते ‘कामुक भोग’ ||
इस
‘विकास’ ने घिनौने,
कितने किये ‘प्रहार’ |
फँसा ‘वासना -
जाल’ में, है
‘आधा संसार’ ||१||
गाँजा-सुल्फा आदि के,
नशे के हुये
‘गुलाम’ |
इन को पी, धन फूँक कर,
घर आते हैं
शाम ||
मज़दूरी कर
दिवस भर, रचते
कई फरेब |
लगा जुवे के दाँव पर,
खाली करते ‘जेब’ ||
उनकी कुल
-वधु-बेटियाँ, करतीं ‘तन - व्यापार’ |
फँसा ‘वासना -
जाल’ में, है
‘आधा संसार’ ||२||
नशेड़ियों
की झुग्गियाँ, बनीं
‘भोग-बाज़ार’ |
इनमें
बेबस नारियाँ, ललनाएँ
लाचार ||
जिन पर
गिरती ‘भूख की, ‘निठुर निगोडी गाज’ |
‘कई’ सुता की
बेचतीं, ‘कोमल - कोरी लाज’ ||
‘निपटातीं’
ऋण ‘लाज’ से, ले
कर कई
उधार |
फँसा ‘वासना -
जाल’ में, है
‘आधा संसार’ ||३||
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बहुत उम्दा अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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