यह सर्ग (मीनार) वास्तव में एक गम्भीर व्यंग्य है इस लिये शब्द -शक्ति व्यंजना इस तरह इस में अभिधा और लक्षणा के साथ मिलाई गयी है कि यथार्थ स्पष्ट अर्थ परिलक्षित कर रहा है|इस रचना में आज कल केझूठे फैशन के आडम्बर की ओर उँगली उठाई गयी है | कोई कोई व्यक्ति ऊँचाई के लोभ में देश तक को बेचने को तैयार हैं विद्या कला खेल की प्रतिभा को भी दाँव पर लगाने को कटिबद्ध हैं ! (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
मौन रहें
तो सालते, हैं
‘दिल के जज्वात’ |
कहें कहाँ ‘किस द्वार’ पर, ‘अपने घर की बात’ ??
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चमका जितना ‘चन्द्रमा’,
है उतना ‘अंधियार’
|
सुनेगा जो भी करेगा,
हम पर ‘व्यंग्य-प्रहार’ ||
बड़े कँटीले
हो गये, हैं ‘विकास
के फूल’ |
‘सदाचार’ के देखिये,
हैं ‘ये
सुख’ प्रतिकूल ||
‘अखलाकों’ पर हो रहा, है ‘मीठा
आघात’ |
कहें कहाँ ‘किस द्वार’ पर, ‘अपने घर की बात’ ??१??
‘पंख’ उठा
कर दिखाते, ‘सुन्दरता’
‘परबाज़’ |
फँसे ‘कशिश’
में झपट कर,
टूट पड़े हैं
‘बाज़’ ||
नारी ‘दर्दों’
से दबी, गयी
है ऐसे ऊब |
‘गज’ के
पाँवों से गयी,
कुचली ‘कोमल दूब’ ||
‘नारीत्व-मन-गगन’ में,
घिरी है ‘काली
रात’ |
कहें कहाँ ‘किस द्वार’ पर, ‘अपने घर की बात’ ??२??
कितनी ऊँची उठ
गयी, ‘विकास की
मीनार’ |
धीरे धीरे हो
गयी, ‘नील गगन’
के पार ||
‘पाखण्डों’ से घिर गये,
‘धर्मों के परिवेश’ |
जुवा - लाटरी’ में
फँसा, उइलाझा अपना
देश || ‘नशे के कोहरे’
में फँसा, ‘बचपन
रूप प्रभात’ |
कहें कहाँ ‘किस द्वार’ पर, ‘अपने घर की बात’ ??३??
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सुन्दर !!
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