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मंगलवार, 14 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (१) वासाना-कारा (९) भूखी कपोती |


‘बाल-विवाह’ यद्यपि सम्भ्रान्त-विकसित देशों में न के  बराबर है किन्तु फिर भी चोरी छिपे  पैसे के लोभ में  कुछ परिवार अपनी बेटियों को  अमीरों या दबंगों के हाथ बेच देते हैं |  विदेशों की एकाध खबर बहुत ही वृद्ध अमीर पुरुष द्वारा अति छोटी आयु की लडकी के साथ विवाह की घटनाएँ प्रकाश में आयीं हैं | बहुत निर्धन माँ बाप दहेज़ की मार से बचने के लिये कहीं पर मजबूर हैं    

      (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 


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‘निर्धनता’  ने  जठर’  से,  लड़ी   है  ऐसी  ‘जंग |
अरे  ‘विवशता’ की  लगी, ‘शील’  में  ‘मैली जंग’ ||


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 ‘तन  के  लोलुप  लक्ष्मी,  के   मतवाले   लाल’ |
‘भूख  की  मारी’  देख कर,  ‘चारा’ रहे  हैं  डाल ||
कुछ  ‘बाजों’  की  देखिये,   बड़ी  घिनौनी  सोच |
‘छोटी चिडियाँ’  फांस  कर,  ‘पर’  लेते  हैं  नोच ||
सौंपी   ‘काया’   भूख   से,   होकर  उसने  तंग |
अरे ‘विवशता’  की लगी, ‘शील’ में  ‘मैली जंग’ ||१||


बिन  ‘दहेज़’ उस  विधुर ने,  किया है ‘बाल-विवाह’ |
‘कोमल  कलिका - पंखुरी’,   टूटी   भरती   आह ||
‘बोझ’  वासना   के   सहें,   कैसे  ‘कोमल  अंग’ |
‘कच्चे  नाज़ुक  सूत’  से,  उड़ती   नहीं  ‘पतंग’ ||
‘बचपन’  के  फीके  हुये,  ‘रूप  के खिलते  अंग’ |
अरे ‘विवशता’  की लगी, ‘शील’ में  ‘मैली जंग’ ||२||


‘हविश की उँगली’  ने  किये,  इतने  ‘निठुर प्रहार’ |
‘नादाँ   कमसिन्  बीन’  के,   टूटे  ‘नाज़ुक तार’ ||
‘भारी  अजर’  ‘मेमने’,   को   ज्यों  रखे,  लपेट |
‘नन्हीं कलियाँ’  चढ़ गयीं,  ‘गज के पाँव’ की भेंट ||
‘छोटी हिरणी’  किस  तरह,  रहे  ‘बाघ’  के  संग |
अरे ‘विवशता’  की लगी, ‘शील’ में  ‘मैली जंग’ ||३||


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‘बाल-विवाह’ यद्यपि सम्भ्रान्त-विकसित देशों में न के  बराबर है किन्तु फिर भी चोरी छिपे  पैसे के लोभ में  कुछ परिवार अपनी बेटियों को  अमीरों या दबंगों के हाथ बेच देते हैं |  विदेशों की एकाध खबर बहुत ही वृद्ध अमीर पुरुष द्वारा अति छोटी आयु की लडकी के साथ विवाह की घटनाएँ प्रकाश में आयीं हैं |    
      

    

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपने तो घातक प्रहार किया है ,देखिये कितने लोगो की आँख खुलती है.

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  2. सलाह देने से से मनको तसल्ली होंती है कि मैने फर्ज पूरा किया | समाज के सही रूप को सामने लाने के ही कारण साहित्य एक दर्पण है !

    जवाब देंहटाएं

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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