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शनिवार, 11 मई 2013

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ठ) आधा संसार | (नारी उत्पीडन के कारण) (१) वासाना-कारा (६) कुबेर-सुत |


अमीरों का उच्छ्रंखल जीवन भी यौन अपराधों का कारण है | इस से भी नारी उत्पीडन होता है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

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दरिद्रता-दुःख-दीनता,  निर्धनता  की मार |
कितना पीड़ित विश्व में, है ‘आधा संसार’ ||
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‘पुत्र   कुबेरों  के’   कई,  ‘कारूँ  के  कुछ  लाल’ |
जिनकी जेबों  में  भरा,  बहुत ‘मुफ़्त  का  माल’ ||
उल्टे-सीधे  ‘मद्य - मद’,  मदिरा – चरस – अफ़ीम |
पीते   खाते  डोलते,  कुछ  मरियल  कुछ  भीम ||

‘कपट-जाल’  ले  ढूँढते,  फिरते  नित्य  ‘शिकार’  |
कितना पीड़ित  विश्व में, है ‘आधा संसार’ ||१||

 
बड़े  मनचले,  चुलबुले,  और  बड़े  उद्दण्ड  |
जो भी चाहें  ये करें,  इन्हें  न  ‘गर्मी-ठण्ड’ ||
‘पैसे के बल’  कुछ  करें,  ऐसे  ‘शोहदे लोग’ |
केवल  इनको चाहिये, ‘तरह तरह  के भोग’ ||
कामोत्तेजक पेट  भर,  खाते  नित्य ‘आहार’ |
कितना पीड़ित  विश्व में, है ‘आधा संसार’ ||२||


 
ये सब  ‘निर्धन-बस्तियों’,  में जाते  हर रात |
रोज़ सजाते सेज निज,  ‘कामी’ बिना ‘बरात’ ||


‘दाम’ लुटा कर, ‘रूप-रंग’,का करते ‘रस पान’ |
ये ‘भोगी’ ‘तन’ रौंदते, रच कर ‘भोग-विधान’ ||
‘जीवन’ करते नष्ट नित,  ‘अनब्याहे सुकुमार’ |
कितना पीड़ित  विश्व में, है ‘आधा संसार’ ||३||

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1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (12-05-2013) मातृ दिवस विशेष चर्चा : चर्चा मंच १२४२ में "मयंक का कोना" पर भी है!
    मातृदिवस की शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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