अमीरों का उच्छ्रंखल जीवन भी यौन अपराधों का कारण है | इस से भी नारी उत्पीडन होता है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार |
कितना पीड़ित विश्व में, है ‘आधा संसार’ ||
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‘पुत्र कुबेरों
के’ कई, ‘कारूँ
के कुछ लाल’ |
जिनकी
जेबों में भरा,
बहुत ‘मुफ़्त का माल’ ||
उल्टे-सीधे ‘मद्य - मद’,
मदिरा – चरस – अफ़ीम |
पीते खाते डोलते,
कुछ मरियल कुछ
भीम ||
‘कपट-जाल’
ले ढूँढते, फिरते
नित्य ‘शिकार’ |
कितना पीड़ित विश्व
में, है ‘आधा संसार’ ||१||
बड़े मनचले,
चुलबुले, और बड़े
उद्दण्ड |
जो भी चाहें ये करें,
इन्हें न ‘गर्मी-ठण्ड’ ||
‘पैसे के बल’ कुछ
करें, ऐसे ‘शोहदे लोग’ |
केवल इनको चाहिये, ‘तरह तरह के भोग’ ||
कामोत्तेजक पेट
भर, खाते नित्य ‘आहार’ |
कितना पीड़ित विश्व
में, है ‘आधा संसार’ ||२||
ये सब ‘निर्धन-बस्तियों’, में जाते
हर रात |
रोज़ सजाते सेज
निज, ‘कामी’ बिना ‘बरात’ ||
‘दाम’ लुटा कर,
‘रूप-रंग’,का करते ‘रस पान’ |
ये ‘भोगी’ ‘तन’
रौंदते, रच कर ‘भोग-विधान’ ||
‘जीवन’ करते नष्ट नित,
‘अनब्याहे सुकुमार’ |
कितना पीड़ित विश्व
में, है ‘आधा संसार’ ||३||
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (12-05-2013) मातृ दिवस विशेष चर्चा : चर्चा मंच १२४२ में "मयंक का कोना" पर भी है!
मातृदिवस की शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'