नारी शोषण की बातें केवल भारी भरकम भाषणों में होती हैं | बिना समा-
धान ही आवाज़ थम गयी है | जब तक सुधार-समाधान न हो,साहित्यकार को अपनी आवाज़ सत्याग्रह के रूप में बिना वाहवाही की लालसा के निरंतर
उठाने देना चाहिये | (गूगल में साहसी यथार्थदर्शी चित्र- प्रकाशक साहित्यकारों को सधन्यवाद वधायी एवं आभार)
उठाने देना चाहिये | (गूगल में साहसी यथार्थदर्शी चित्र- प्रकाशक साहित्यकारों को सधन्यवाद वधायी एवं आभार)
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शोषण के हाथों थमा, ‘पैना
अत्याचार’ |
‘मानवता’ के बदन पर, कितने हुये
प्रहार ||
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चुरा चुरा कर बेचते, ‘प्रकृति के परिधान’ |
‘चीर धरा का’ हरण कर, बने निठुर इंसान ||
‘घूस-कमीशन-दानवों’,
की आयी है बाढ़ |
‘प्रगति की हिरनी’ को चबा, रही है इनकी ‘दाढ’ ||
‘लाभ-लोभ’ ने ‘लूट’ का, किया गरम
बाज़ार |
‘मानवता’ के बदन पर, कितने हुये
प्रहार ||१||
‘ट्यूशन’ ने ‘तालीम’ में, जमा लिये हैं पाँव |
‘गिरू-शिष्य का प्रेम’ है, चढ़ा इसी के दाँव ||
चुरा चुरा कर बेचते, हैं ‘सरकारी माल’ |
‘चोरों के दुश्चक्र’ से, हुआ देश ‘कंगाल’ ||
‘सेवक’ सेवा’-रत कई, करते हैं
व्यापार |
‘मानवता’ के बदन पर, कितने हुये
प्रहार ||२||
रुके
दफ्तरों में अगर, ‘कुलटा पापिन घूस’ |
‘ट्यूशन’
भी रुक जायेगी, रक्त रहे ये चूस ||
सबसे
पहले रोकिये, ‘पापी कुटिल
दहेज़’ |
जिस की
‘मार’ से ‘देश का सीना’ है लवरेज़ ||
बिना एक
के दूसरे, का
रुकना बेकार |
‘मानवता’ के बदन पर, कितने हुये
प्रहार ||३||
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