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जग में क्यों फैला हुआ, है ‘दुर्दम
आतंक’ |
‘मानवता की
गोद में, है आतंक ‘कलंक’ ||
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कई देश इस
विश्व के, ‘प्रेम’ से हैं अनजान |
कैसे रहें
पड़ोस में, इस का नहीं है ज्ञान ||
‘शासन की
दुर्लालालसा’, या ‘धरती का लोभ’ |
भोली जनता
के हृदय, में भर देता क्षोभ ||
‘मन के गगन’
में खिन्न है, ‘राहू’-ग्रसा ‘मयंक’ |
‘मानवता की
गोद में, है आतंक ‘कलंक’ ||१||
दहशत की इस ‘आग’ में, जले ‘भावना-बाग’
|
पजरे ‘स्नेह के सुमन’ हैं, झुलस
गये ‘अनुराग’ ||
कितने ‘भँवरे भाव के’, जल कर हुये
हैं राख |
और ‘कामना-तितलियों,’ के झुलसे हैं ‘पाँख’ ||
और ‘कामना-तितलियों,’ के झुलसे हैं ‘पाँख’ ||
लगता ‘ज्वालामुखी’
से, झरी ‘आग की ‘पंक’ |
‘मानवता की
गोद में, है आतंक ‘कलंक’ ||२||
‘सत्तावाद’ ने हर लिया,है जन जन का ‘हर्ष’ |
इस से पीड़ित है नहीं, केवल भारतवर्ष |
अमेरिका या अरब या, रूस, चीं, जापान ||
इस के हुये शिकार सब, खो कर ‘अपनी शान’ ||
इस दुनियाँ
में अब कहाँ, कौन रहे निश्शंक |
‘मानवता की
गोद में, है आतंक ‘कलंक’ ||३||
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बहुत ही यथार्थ भावपूर्ण प्रस्तुति.आभार.
जवाब देंहटाएंइश्वर करे,अगले वर्ष फिर होली तक सारे पर्व साथ मनायें !!
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