इस रचना में
@@@@@@@
‘मन-सु-गगन’ में ‘काम-घन,
उठे ‘निरंकुश’ आज |
जगी ‘वासना की तड़ित’, पशुवत ‘मनुज-समाज’ ||
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
तज कर ‘सात्विक भोज’ को, ‘अति तामस आहार’ |
अधिक मद्य पी मद-भरे,
‘पशुओं’ से व्यवहार ||
‘कामोत्तेजक
चित्र’ लख , उठा ‘वासना-ज्वार’
|
फिर ‘संयम के बाँध’ की,
टूट गयी ‘दीवार’ ||
‘भोली
चिड़ियाँ’ ढूँढते, ‘कामी जन’
बन ‘बाज’ |
जगी ‘वासना की तड़ित’, पशुवत
‘मनुज-समाज’ ||१||
‘मर्यादा से हीन
पशु’, बन
कर करे शिकार |
‘मानवता’
में पनपते, ‘जंगल
के आचार’ ||
‘छल-बल-कपट के दाँव’
से, करते ‘कामुक घात’ |
‘शील’ पे
करते ‘आक्रमण’, रच ‘कामी
उत्पात’ ||
‘धन’-‘जन-मत’ या ‘प्रबल तन’, का है ‘ऐसा
राज’ |
जगी ‘वासना की तड़ित’, पशुवत
‘मनुज-समाज’ ||२||
फ़ुसलाकर,
दे लोभ कुछ,
डाल ‘कामके पाश’ |
‘नन्हें पँछी प्यार
के’, ‘धूर्त’ लेते
फांस ||
कुछ
‘उलूक-सूत’ ढूँढ कर, ‘कुमारियाँ
मजबूर’ |
‘भूखी - प्यासी
विवशता’, करें ‘भोग’
भरपूर ||
‘सम्विधान’ रख
‘ताख’ में, लूटें
‘ललना-लाज’ |
जगी ‘वासना की तड़ित’, पशुवत
‘मनुज-समाज’ ||३||
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
आज के हालात पर सार्थक चित्रण,आभार.
जवाब देंहटाएं