(सारे चित्र 'गूगल-खोप्ज' से साभार!)
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कितने ‘मैले’
हो गये, ‘प्रेम-हँस के पंख’ |
‘सदाचार की वायु’ में, उछली
इतनी ‘पंक’ ||
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‘सम्बन्धों की नाव’ में,
‘रिश्तों की पतवार’ |
दोनों ‘टूटे’
किस तरह, पार करें
‘मझधार’ ||
‘सीताओं’ को मिल रहा, घर में ही
‘वनवास’ |
‘कौशल्या’ भी बन
गयीं, ‘कैकेयी’ सी सास
||
‘लखन-भरत के स्नेह’ में, लगे
‘स्वार्थ के डंक’ |
‘सदाचार की वायु’
में,
उछली इ तनी ‘पंक’ ||१||
‘प्रगति’ का हमको
मिला है, सा ‘नया इनाम’ |
‘नयी उम्र की फ़सल’ भी, नशे
की हुई गुलाम ||
‘फैशन शो की नग्नता’, देख के
‘नौनिहाल’ |
हल करने को घूमते,
कामुक
‘कई सवाल’ ||
‘भोलेपन’ पर लग गये, कितने ‘मलिन कलंक’ |
‘सदाचार की वायु’
में, उछली इतनी
‘पंक’ ||२||
‘छोटी छोटी तितलियाँ’, ढूँढ रही हैं ‘फूल’
|
‘कोमल-कमसिन कोख’ में,
पलने लगी है ‘भूल’ ||
‘मर्यादा की डोर' से, ’लाज’ की बँधी ‘पतंग’ |
‘दाँव-पेच’ से
कट गयी, लूटे
उसे ‘अनंग’ ||
‘बालापन के
पटल’ पर, लिखे
‘वासना-अंक’ |
‘सदाचार की वायु’
में, उछली इतनी
‘पंक’ ||३||
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वाह ...बहुत सुन्दर मित्रवर!
जवाब देंहटाएंसभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं।
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय ||