(सारे चित्र 'गूगल-खोप्ज' से साभार!० चित्र जो इस रचना के लिये पुष्टिकारक होते, वे मर्यादा विरुद्ध होने के कारण नहीं डाले |
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‘नग्नवाद’ ने आजकल,
किये कलुष व्यवहार |
‘गंगाजल’
में घुल गयी, है ‘मदिरा की धार’ ||
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‘लाज-शील’ के
देखिये, टूटे ‘नाज़ुक
तार’ |
‘चीर-हरण’ के
लिये खुद, ‘द्रौपदियाँ’ तैयार |
बहुत भला
होता नहीं, यह
‘जीने का ढंग |
‘आचरणों की
सतह’ पर,
चढ़ा ‘प्रदूषित रंग’ ||
‘आदिमानवों’ की
तरह, खुले ‘मिथुन-आचार’ |
‘गंगाजल’ में घुल गयी,
है ‘मदिरा की धार’ ||१||
टूट गयी है
‘हया की,
कनकैया की डोर’ |
देखो,
‘प्रगति की आँधियों’, ने दी यों झकझोर ||
‘कच्चे
तिलों’ में ‘वासना’, का पनपा है ‘तेल’ |
‘कमसिन
कलियाँ औ भ्रमर’, खेलें ‘कामुक खेल ||
‘पूनम’ से पहले उठा, है
‘सागर में ‘ज्वार’
|
‘गंगाजल’ में घुल गयी,
है ‘मदिरा की धार’ ||२||
‘धन की प्यासी तितलियों’, का अब बुरा है हाल |
‘पंख के वसन’
उतार कर, कमा रही हैं ‘माल’ ||
‘आचरणों की झील’ के, नीर’ में भड़की ‘आग’ |
इन्हें देख कर ‘रूप
की, प्यास’ रही है जाग ||
ज्यों बादल को काटती,
‘बिजली की तलवार’ |
‘गंगाजल’ में घुल गयी,
है ‘मदिरा की धार’ ||३||
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