(चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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जगे ‘कंस-रावण’ यहाँ,
सोये ‘राम व श्याम’ |
‘वित्तवाद की प्रगति’
का कैसा मिला ‘इनाम’ ||
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‘अपहरण-अपराध’ अब, बने हुये ‘व्यवसाय’ |
‘न्याय’ छुपाकर मुहँ चला, पनप रहा अन्याय’
||
‘दहेज़ के दुश्पाप’ ने, ‘प्रेम’ को लिया
लपेट |
भोली भाली लडकियाँ, चढी हैं इसकी भेंट ||
‘स्नेहिल रिश्तों’ के
लगे, महँगे महँगे ‘दाम |
‘वित्तवाद की प्रगति’
का कैसा मिला ‘इनाम’ ||१||
मन्दिर-मस्जिद या कोई, गुरूद्वारे
व मज़ार |
गिरिजाघर - दरगाह हों,
बने आज बाज़ार ||
बने
‘सियासत’ के सभी, ‘अड्डे’
हैं बे जोड़ |
‘शैतानों’
से कर रहे,
चुपके से गठजोड़ ||
सारे ‘तीर्थ’ बन
गये, ‘ठगों’ के आज मुकाम |
‘वित्तवाद की प्रगति’
का कैसा मिला ‘इनाम’ ||२||
‘खुदगर्ज़ी की डाल’ पर,
फलते ‘फल- अपराध’ |
‘शोषण-पशु’ खा कर इन्हें,
घूम रहे निर्वाध ||
रोई ‘भारत
की धरा’, सूख
गये हैं नैन |
‘दिल के
दर्दों’ को नहीं,
कर पाती है सहन ||
पता नहीं
इस का कभी,
क्या होगा परिणाम |
‘वित्तवाद की प्रगति’ का कैसा
मिला ‘इनाम’ ||३||
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