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‘लोभ की पैनी धार’ की, पड़ी है ऐसी मार |
‘भावुकता’ घायल हुई, ‘प्रेम’ में पड़ी
‘दरार’ ||
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‘वित्त्वाद की मकड़ियाँ’, मन में ली हैं पाल |
चुपके चुपके बुन रही, हैं ‘लालच के जाल’ ||
‘जज्वों’ से सूने हुये, ‘दिल’ बन गये ‘मशीन’
|
रूखे - नीरस
हो गये, सभी भाव रंगीन ||
‘स्नेह के कमलों’ पर पड़ी, ‘तेज़ाबी बौछार’ |
‘भावुकता’ घायल हुई, ‘प्रेम’ में पड़ी
‘दरार’ ||१||
दुखी और भी दुखी हैं ,
शोषित हो कंगाल |
खाते ‘रूखी रोटियाँ’, बिन
‘सब्जी’ बिन ‘दाल’ ||
कई ‘लुटेरे’
लूटते, उड़ा रहे
‘तर माल’ |
ऊपर से ओढ़े
हुये, ‘राजनीति की
खाल’ ||
‘जमा खोरियों’ के कई,
गरम हुये
‘बाज़ार’ |
‘भावुकता’ घायल हुई, ‘प्रेम’ में पड़ी
‘दरार’ ||२||
‘धनिकों–निर्धन’ में हुआ, है
‘खाई सा भेद’ |
‘मिट्टी’ से सस्ता हुआ, है
‘श्रीमिकों का स्वेद’ ||
‘समता की कचनार’ पर, ‘हिम’ का हुआ निपात |
और ‘एकता-बेलि’ पर,
‘ओलों का आघात’ ||
जनता यदि न सचेत हो, करेगी क्या सरकार |
‘भावुकता’ घायल हुई, ‘प्रेम’ में पड़ी ‘दरार’ ||३||
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सुन्दर प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय ||