कभी कभी सुन्दर दिखाई देने वाले कीड़ों के काटने से विष - प्रभाव इतना होता है कि जीवन समाप्त हो जाता है | इसी प्रकार चमक दमक की आड़ में समाज में विषैला प्रदूषण ही फैलता है | हर चमीकीली चीज़ अच्छी नहीं होती |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )
&&&&&&&&&&
&&&&&&&&&&&&&&&&
हाथ में जुगनू पकड़ कर, मलिन हुआ ‘स्पर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’ से,
उन्हें हुआ है हर्ष ||
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
‘सोने के पिंजर’ फँसी, ‘मैना’
हुई गुलाम |
‘बन्दी’ बन कर भोग सुख,
‘दण्ड’ को समझ ‘इनाम’ ||
‘तृष्णा सोने
की’ बसा, मन
व्याकुल बेचैन |
जगते, सोते,
‘लाभ की, चिन्ता’
है दिन रैन ||
पतित
हुआ है ‘आचरण’,
समझ रहे ‘उत्कर्ष’ |
‘लोभ की मैली चमक’ से,
उन्हें हुआ है हर्ष ||१||
बेच दिया ‘ईमान’ को,
फिर बेचा है
‘ज़मीर’ |
‘भावुकता’ के तन कसी, ‘सोने
की जंजीर’ ||
रिश्ते – नाते -
दोस्ती, सब से
बढ़ कर वित्त |
अपनों से बढ़ ‘स्वर्ण’ है, लगा
उसी में ‘चित्त’ ||
बस
‘सिक्कों की खनक’
में, दबे हैं ‘प्रेम-विमर्श’ |
‘लोभ की मैली चमक’ से,
उन्हें हुआ है
हर्ष ||२||
‘प्रेम’ हुआ ‘व्यापार’
सा, ‘दिल
हो गये ‘दूकान’ |
‘धन की चोट’
से हो गये,
दुर्बल हैं ‘मन-प्राण’ ||
‘श्रद्धा - आस्था’ हो
गयीं, हैं कितनी
कमज़ोर |
‘भक्ति का मोती’ चुर गया, घुसा
‘लोभ का चोर’ ||
फँसा
है किस ‘जंजाल’
में, सारा भारतवर्ष |
‘लोभ की मैली चमक’ से,
उन्हें हुआ है
हर्ष ||३||
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंखटीमा कब आ रहे हो मित्रवर!
घुसा कीट साहित्य का, मन हो गया विभोर।
जवाब देंहटाएंछाये हैं प्रसून जी, अब तो चारों ओर।।
स्वास्थ्य ठीक होते ही आ धमकूँगा मित्रवर !मंगल याबुध्वार को आऊँगा |
हटाएं