(सारे चित्र गूगल-खोज' से स्वाभार)
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‘यौन-क्रान्ति’ की आड़ में, हुई नग्न ‘तहज़ीब’ |
हम हैरत में पड़ गये, बात है बड़ी अजीब ||
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‘कलियाँ’ कई गुलाब की, ‘पंखुरियों’
से तंग |
हैं दिखलाती चाव से, खुले अधखुले अंग ||
विज्ञापन के बहाने,
अपने ‘वसन’ उतार |
अपने ‘सुन्दर रूप; का, करती हैं ‘व्यापार’ ||
इन्हें देख ‘इंसानियत’, की डोली है ‘नींव’ |
हम हैरत में पड़ गये, बात है बड़ी अजीब ||१||
लम्पट लोगों के लिये, हैं ये ‘दृश्य’ ‘अजीज़’ |
किन्तु ‘लड़कपन’ में उगे, ‘कामुकता के बीज’ ||
‘तरूणों के मन’ में छुपी,
गयी ‘वासना’ जाग |
कुछ ‘सोई चिनगारियाँ’, भड़कीं बन कर ‘आग’ ||
‘सदाचार’ को चाटती, ‘अनाचार
की जीभ’ |
हम हैरत में पड़ गये, बात है बड़ी अजीब ||२||
बालक- तरुण-किशोर सब, ढूढ़ें ‘काम के भोग’ |
‘नन्हें भँवरे’,
‘कली’ के, चाह रहे
‘संयोग’ ||
‘इच्छाओं के गगन’ में, ‘दुराचार के गिद्ध’ |
भोली किसी ‘कबूतरी’, के ‘शिकार’ में सिद्ध ||
इस ‘पशुता’ से हम बचें, करो कोई
तरकीब |
हम हैरत में पड़ गये, बात है बड़ी अजीब ||३||
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‘यौन-क्रान्ति’ की आड़ में, हुई नग्न ‘तहज़ीब’ |
जवाब देंहटाएंहम हैरत में पड़ गये, बात है बड़ी अजीब||
यही आज का सच -सुन्दर प्रस्तुति
बहुत बढ़िया -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-