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जानें कितनी बार
है, बदल चुकी सरकार |
ज्यों के त्यों ज़िन्दा अभी, ‘जलते भ्रष्टाचार ||
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‘राजनीति के खेल’ में, पनपा है ‘छल’
आज |
जनता ‘चिड़िया’ बन गयी, नेता हैं कुछ
‘बाज’ ||
‘भ्रष्ट तन्त्र’ को दे दिया,
‘प्रजातन्त्र’ का नाम |
इस
‘काँटों की बाड़’ ने, चुभते
दिये ‘इनाम’ ||
मिले ‘राज्य’ से बीच में, छीन जाते अधिकार |
ज्यों के त्यों ज़िन्दा अभी, ‘जलते भ्रष्टाचार ||१||
कुछ पैसों
के लिये हम,
बेच रहे ‘ईमान’ |
‘राष्ट्र-भक्ति’
के नाम पर, देते हैं ‘व्याख्यान ||
चतुराई से
भर रहे, अपने घर में ‘कैश’ |
‘जनता
के श्रम’ से अरे,
लूट र हे वे ‘ऐश’ ||
‘वित्तवाद के रोग’ से,
हुये हैं हम ‘बीमार’ |
ज्यों के त्यों ज़िन्दा अभी, ‘जलते भ्रष्टाचार ||२||
लोभ
हुआ ‘ख्ब्बीस’ सा, तृष्णा ‘निठुर
चुड़ैल’ |
दोनों मिल
कर खेलते, ‘नाश-कबड्डी-खेल ||
इस
से उपजे ‘कमीशन-घूस औ कुटिल दहेज़’
|
जिन
के ‘दंश’ से देश
का, सीना
है लवरेज़ ||
है ‘धरती पर
भार’ सा,
इन का हर
व्यहवार |
ज्यों के त्यों ज़िन्दा
अभी, ‘जलते भ्रष्टाचार ||३||
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