होली की अग्रिम वधाई ! सब का जीवन सुखी हो सतरंगी हो !!
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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मृग-छौने के अंक में, चुभता बिच्छू-डंक |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को आतंक ||
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‘आतंकों’ से काँपते, हैं जनता
के पैर |
जैसे कोई ‘मेमना’, ‘वधिक’ से माँगे खैर ||
जैसे कोई ‘मेमना’, ‘वधिक’ से माँगे खैर ||
जनता ‘भय के ताल’ में, रही है
ऐसे तैर |
जैसे ‘मछली’को हुआ, ‘मगरमच्छ’
से वैर ||
‘स्वतंत्रता के चाँद के, माथे’ चढ़ा ‘कलंक’ |
‘स्वतंत्रता के चाँद के, माथे’ चढ़ा ‘कलंक’ |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को
‘आतंक’ ||१||
आतंकी पनपे यहाँ, ‘कंटालों में
शूल’ |
‘छल-बल’ से ‘हफ्ता तथा, ‘चन्दा’
रहे वसूल ||
‘शक्ति-प्रदर्शन’ के लिये,
ल्कराते अत्याचार |
निर्दोषों को बेवजह, रहे हैं देखो
मार ||
‘मन की गलियों’ में भरी, है ‘हिंसा की पंक’ |
‘मन की गलियों’ में भरी, है ‘हिंसा की पंक’ |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को
‘आतंक’ ||२||
जिसका ‘डण्डा’
सबल है, उसे है पूरी छूट |
जिस पर
भृकुटी तन गयी, ले वह उसको लूट ||
ज्यों ‘कपोत’
पर ‘चील’ ने, निठुर लगाई घात |
‘हिंसा’ के
यों हो रहे, जन जन में उत्पात ||
‘जन-धन-शक्ति’ से धनी, ‘मानवता’
से रंक |
देखो ऐसे डस गया, ‘संस्कृति’ को
‘आतंक’ ||३||
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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bahut sundar prastuti.
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