राष्ट्र, ‘समष्टि-ब्रह्म’ तू, पूज्य जैसे ईश !
तुझको कोटि प्रणाम हैं, विनत झुका कर शीश ||
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‘भौगोलिक परिवेश’ है, सुन्दर ‘तेरा शरीर’ |
नदियाँ ‘रक्त प्रवाहिनी’, ‘रुधिर’ सुपावन नीर ||
‘वायु’ तेरे ‘प्राण’ हैं, ‘पवन’ तेरी साँस |
संस्कृति ‘तेरी आत्मा’, मय ‘आस्था-विशवास’ ||
‘वैचारिक थाती’ है ‘मन’, ‘मस्तक तेरा’ गिरीश !
तुझको कोटि प्रणाम हैं, विनत झुका कर शीश ||१||
फलदायी है
वरद है, तेरा रूप विराट |
मन में ‘आशा-ज्योति’
भर, ‘अन्धकार को छाँट ||
‘जगद्गुरु’
तू रहा है, मेरे भारत देश !
तूने दिये
अतीत में, जग को नव संदेश ||
ज्यों ‘रजनी’ को दे सुखद, ‘धवल कान्ति’ रजनीश |
तुझको कोटि
प्रणाम हैं, विनत झुका कर शीश ||२||
हो कर ‘शुद्ध हृदय-मन’, ‘अहंकार’ को मेट |
अर्पित सेवा में तेरी, यह ‘काव्य की भेंट ||
‘तेरे प्रेरण’ से भरे ,’मेरे मुक्त विचार’ |
जन जन में ये कर सकें, ऊर्जा’ का संचार !!
दो “प्रसून” को अब प्रभु, अपना यह आशीष !
तुझको कोटि प्रणाम हैं, विनत झुका कर शीश ||३||
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.बहुत सुन्दर आभार ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर . .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात WOMAN ABOUT MAN
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