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‘जीवन’ को ठण्डा कर डाला, आग लगे इस’ मौसम’ को !
‘कितना दुःख भरा असर’ डाला, आग लगे इस’मौसम’ को!
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मैदान ग्लेशियर से शीतल, बैठे है सभी बेचैन हुये |
कोहरे में लिपटे ढँके ढँके, दिन भी हैं मानो रैन हुये ||
घर से बाहर तक ठिठुरन है, गलियों चौबारों में इसने-
लगता है बर्फ़ को भर डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !
‘जीवन’ को ठण्डा कर डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !
‘कितना दुःख भरा असर’ डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !!१!!
यह ‘हवा’ बड़ी बे दर्द हुई, हम सब के हाड़ कँपाती है |
वह देखो ! ‘गरीबों की बस्ती’, बस ठिठुर ठिठुर रह जाती है ||
ईंधन महँगा, तापें कैसे, सी सी करते रहते जीते –
‘उनकी खुशियों’ पे पड़ा ‘ताला’, आग लगे इस’मौसम’ को !!
‘जीवन’ को ठण्डा कर डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !!२!!
आई तो लगी ‘मेहमान’ सी थी, ‘फल फूलों के तोहफ़े’ लायी |
फिर ‘पाँव जमा कर’ ठहर गयी, इसने की कितनी रुसवाई ||
अब ‘पाँव पसारे’ लेटी है, कर दी है ‘नींद हराम’ अरे !
इसने ‘बेशर्मी’ को पाला, आग लगे इस’मौसम’ को !
‘जीवन’ को ठण्डा कर डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !
‘कितना दुःख भरा असर’ डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !!३!!
जैसे कि यहाँ अँगरेज़ घुसे, भारत में ‘झुकाये शीश’ कभी |
हथिआया फिर पूरा भारत, इन से पीड़ित हो गये सभी ||
उनके आतंकों सा इसने, भी फैलाया आतंक यहाँ-
‘चाँदनी’ को कर डाला काला, आग लगे इस मौसम को !!
‘जीवन’ को ठण्डा कर डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !
‘कितना दुःख भरा असर’ डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !!४!!
वन-बाग में पत्तों से झरता, टपके आँसू सा है पानी |
लगता है ‘पादप-तरु’ रोये, देखो तो ‘ठण्ड की मनमानी’ ||
‘कलियाँ’, "प्रसून” सब मुरझाये, बेजान हुये भूले हँसना-
उफ़ ! इसने यह क्या कर डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !
‘जीवन’ को ठण्डा कर डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !
‘कितना दुःख भरा असर’ डाला, आग लगे इस’मौसम’ को !!५!!
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बहुत बढ़िया व्यंजना |
जवाब देंहटाएंबधाई भाई जी ||