'माधुर्य गुण' एवं 'प्रसाद गुण' का समन्वय
============================
प्रेम का अलौकिक स्वरूप मन और आत्मा के बीच की एक कड़ी है | यह प्रेम 'सांसारिक धरातल' पर भी 'स्थाई आनन्द' का कारण है और पूर्ण शुद्ध मन इस प्रेम का स्थल है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से उद्धृत)
====!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!====
‘नत मस्तक’ हूँ आज ‘तुम्हारे द्वार’ पर |
करना मत सदेह, ‘हमारे प्यार’ पर !!
====!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!====
‘काम’,’क्रोध’,’मद’,’लोभ’ बने ‘अंगार’
से |
‘जीवन के क्षण’, जल कर हुये हैं ‘क्षार’
से ||
धरा
हुआ ‘मन’, ‘धन के लोभ की धार’ पर ||
करना मत
सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!१!!
‘माया मद मय मोह’ मिला ‘संसार’ से |
‘सम्बन्धों के जाल’ बुने हैं ‘विकार’ से ||
‘इच्छायें’ चलतीं ‘तीखी तलवार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!२!!
जो भी ‘क्रय’ करते, ‘जग के बाज़ार’ से
|
‘बोझल’ करता, लाद हमें हमें यों ‘भार’
से ||
‘धारा’
से फिर कैसे आऊँ ‘किनार’ पर ?
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!३!!
खिन्न हुआ ‘मन’, मृषा ‘असत्-व्यापार’ से |
टूट चुका हूँ कभी ‘विजय’, कभी ‘हार’ से ||
हा धिक्, हा धिक्, हर ‘भौतिक उपहार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!४!!
कैसे गूँजे ‘मन’, ‘वीणा-झंकार’ से |
‘कर की उँगली’ उलझी, ‘टूटे तार’ से ||
‘वृत्ति’ नाचती है, ‘पैनी दोधार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!५!!
‘नौका’ उलझी,
फँसी हुई ‘मझधार’ से |
चढ़ते और
उतरते, ‘सागर-ज्वार’ से ||
क्या वश है, मेरा ‘पापी संसार’ पर |
करना मत सन्देह, ‘हमारे प्यार’ पर !!६!!
====!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!====
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें