आशा जीवन का 'वास्तविक स्वरूप' है,निराशा नहीं |
हर निराशा एक आशा की जननी है | इस रचना का यही उद्देश्य है | (सारे चित्र 'गूगल-खोज 'से उद्धृत')
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‘बीहड़ रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’ कर कर ‘जतन’ मिलेंगे |
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माना यह ‘कट्टर पठार’ है |
यहाँ न ‘जल की सरस धार’ है ||
इसके ‘तन-मन’ दोनों ‘पत्थर’-
हर ‘कोमलता’ दर किनार है ||
पर इसकी ‘पथरीली छाती’-
पर ढूँढ़ें तो ‘रतन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़ रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’ कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||१||
किसी का ‘मन’, ‘दुःख का सागर’ है |
‘अपेय जल’ का जो ‘आगर’ है ||
‘नदियों’ के ‘दर्दों का संगम’-
‘भीषण खारेपन’ का घर है ||
इसमें छुपी ‘सीपियों’ में कुछ-
‘मोती’ कर के ‘मनन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़ रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’ कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||२||
‘खान कोयले की’, ‘अन्धेरी’ |
‘गली गली’ है ‘तम’ ने घेरी ||
कोई ‘निरापद दीप’ जला कर-
करो ‘उजाला’, करो न देरी ||
इसमें अगर तलाशोगे तो-
‘हीरे’ कर के ‘खनन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़ रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’ कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||३||
मिटे ‘बाग-वन, छैल छबीले’ |
हुये ‘कसैले’, ’स्वाद रसीले’ ||
‘प्रकृति-सुन्दरी’ के आकर्षक-
‘केश-वेश’ हैं ‘मलिन’, सजीले ||
फिर कोई ‘अभियान’ चलाओ-
“प्रसून” वाले ‘चमन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़ रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’ कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||४||
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