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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

चादर में दाग |


देश का इस से बड़ा दुर्भाग्य क्या होसकता है कि सार्वजानिक साधन भी सुरक्षित नहीं हैं महिला के लिये ? इस से अच्छी बात क्या हो सकती है कि आज जागरण दिखाई दे रहा है | लगता अहि कि सोया 'ज्वालामुखी' जग गया हो !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 

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‘भारतीयता की चादर’ में हैं दिल्ली में दाग लगे |
‘मैली दलदल’ के विकास में ‘राम’ करे अब ‘आग’ लगे ||  ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
‘आदर्शों की धरती’ हिन्द की , आज घिनौनी कैसे है ?
आसमान तक उठी ‘बुलन्दी’ हो गयी बौनी कैसे है ??
‘नारी’,दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी’ सा ‘आदर’ पाती थी-
‘लाज’ लुट गयी इसकी कैसे, सूरत  रोनी कैसे है ??
‘सुन्दर महके फूलों वाले बागों’ के स्थान पे अब-
‘कीकर के काँटों’ वाले चुभते, अब कैसे बाग लगे ??
‘भारतीयता की चादर’ में हैं दिल्ली में दाग लगे |
‘मैली दलदल’ के विकास में ‘राम’ करे अब ‘आग’ लगे ||१!!  

‘सभ्यताओं’ का एक समन्वित, यह ‘भारत का वक्ष’ रहा |
‘वाणी’ मुखरित, ‘सच से ‘निखरी’,इसका हर स्वर’ स्वच्छ’ रहा ||
‘सच्ची प्रीति की वीणा’ थामे, ‘स्वर-लहरी’ जो बजा रहा –
‘मिस्री-मधुरित सुर’ सरसाने, में ‘भारत-उर’ दक्ष रहा ||
लगता है, ‘पिशाच’ ने ‘अपने, हाथों’, को मजबूत किया-
‘विनाश’ के अब बड़े ‘कंसुरे, घृणित औ कर्कश’ राग जगे ||
 ‘भारतीयता की चादर’ में हैं दिल्ली में दाग लगे |
‘मैली दलदल’ के विकास में ‘राम’ करे अब ‘आग’ लगे ||२!!


सारी दुनियाँ इस भारत को, ‘देव-लोक’ सा कहती थी |
बैठ के ‘इस की छाँव’ में कुछ पल, अति आनन्दित रहती थी ||
‘अपनी माँ की गोद’ सा सुखमय, ‘मीठा अनुभव’ होता था-
इस के ‘धरा के आँचल’ में बस, ‘प्रेम की सरिता’ बहती थी ||
कैसे होंगे हजम हमें अब, हम को लगता मुश्किल है-  
“प्रसून”, ‘व्यंजन व्यवस्थाओं के’ किस ‘विष-रस’ से आज पगे ??  
‘भारतीयता की चादर’ में हैं दिल्ली में दाग लगे |
‘मैली दलदल’ के विकास में ‘राम’ करे अब ‘आग’ लगे !!३!!


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7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति नारी महज एक शरीर नहीं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. मुझे हर्ष ही नहीं गर्व भी है कि मेरी बहन-मित्र सहमत है कि नारी विश्व की 'आधी शक्ति'है |उस का अनादर मानवता' का अनादर है और इस से मानवता कमज़ोर होगी अर्थात ;पशुता' को आमंत्रण होगा!

      हटाएं
  2. बढ़िया सटीक ,सार्थक रचना ,नारी को जागना ही पढ़ेगा : इसी से मिलती
    नई पोस्ट : "जागो कुम्भ कर्णों" , "गांधारी के राज में नारी "
    '"सास भी कभी बहू थी ' ''http://kpk-vichar.blogspot.in, http://vicharanubhuti.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया...
    सार्थक एवं सशक्त अभिव्यक्ति...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. आज की नारी अस्मिताविहीन हो रही है,उस पर एक खुला पत्र.
    आवाज उठती रहनी चाहिये.

    जवाब देंहटाएं

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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