एक ओर 'नारी उत्पीडन' का लंबा इतिहास दूसरी ओर, 'नारी सुधार का घृणित ढोंग | मैं यह भी मानता हूँ कि,कई 'नारी कल्याण' की संस्थाएं अच्छी सेवा कर रही हैं किन्तु इन में कुछ संस्थाओं द्वारा निष्ठा -विशवास में सेंध मारने की घटनाओं का उल्लेख,समाचारों किम्वादंतियों,सिने-कथाओं ,उपन्यासों,और कुछ महानगरों में यात्रा के दौरान लोगों द्वारा बताए जाने पर सुनने पढाने में आया |कुछ मेरी कल्पना के मिलाजुला रूप इस रचना में है | नारी को भटका कर या अपहरण करके बेचने की घटनाएँ आम हैं |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!
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फांसते हैं, कई उसे अपने ‘जाल’ में ||
‘जादू’ जैसे ‘रस भरे’ अपने ‘कमाल’ में |
हैं ‘कोकिलों’ को फंसाते ‘करील-डाल’में ||
या कोई उसके ‘पेट की आग’ बुझाने |
अपनी ‘हविश’ की ‘घिनौनी प्यास’ मिटाने ||
हर तरह करता उसे ‘लाचार’ देखिये !
‘इंसान’ हुआ किस तरह ‘मक्कार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!१!!
‘जिन्दा’ जलायी जा रही ‘तहजीब’ आजकल ||
कितना हुआ है देश ‘बदनसीब’ आजकल |
‘इंसानियत’ के गिर गये ‘नसीब’ आजकल ||
फिर भी लगे हैं ‘तरक्की’ के ‘शोर’ मचाने |
‘नारी-प्रगति’ के लगे हैं ‘स्वाँग’ रचाने ||
करते हैं ‘राजनीति’ के व्यवहार देखिये !
बनते ‘सुधारक’, कई तो ‘अवतार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!२!!
‘आश्रम अनाथों के’ यहाँ, कितने चल रहे ??
इनको चलाने हेतु, कितने ‘नोट’ मिल रहे ?
‘तन’, ‘नारियों-कुमारियों’ के कितने पल रहे ??
‘अपनी कामना की गलित फसल’ उगाने |
तो कई लोग, इनसे बड़ी ‘रकम’ कमाने ||
कर इन के तन का ये रहे ‘व्यापार’ देखिये !
‘निष्ठुर’, जवानी’ पर हुये ‘प्रहार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!३!!
‘बातें’ हैं इनकी ‘ठोस’, किन्तु ‘नीति, ’खोखली’ ||
चलते हैं ‘चाल’, ‘घृणित’ और ‘बहुत दोगली’ |
‘हर बात’ इनकी, ‘झूठ और उलटी’ हो चली ||
‘शोहरत का महल’, ‘नील गगन’ तलक उठाने |
‘ऐयाशियों’ से अपनी ‘रँगी रात’ सजाने ||
करते हैं ‘अस्मिता’ का ये ‘शिकार’ देखिये !
हैं कितने ‘वासना’ के ये ‘बीमार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!४!!
पाला था जिन्हें, बड़े ‘लाड़ और प्यार’ से |
‘अपनी सुता’ की तरह रखा था ‘दुलार’ से ||
सींचा ‘ममत्व’ की ‘सुहानी स्नेह-धार’ से |
वे भी न बचीं इनके ‘घिनौने प्रहार’ से ||
ढाया है ‘ज़ुल्म’ इनकी ‘क्रूर मनोदशा’ ने |
‘बेदर्द’ हैं, ‘निर्लज्ज’, इनके सभी फ़साने ||
खुद पाली ‘तितलियों’ को रहे मार देखिये !
‘रंगीन मछलियों’ को रहे मार देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!५!!
‘लोगों का लोभ’ बन गया, ‘दहेज’ देखिये !
‘शोषण’ से रहे ‘धन’ को ये सहेज देखिये !!
हैं ‘चाहतें इनकी’ बड़ी ‘खूंरेज़’ देखिये !
नारी को रहे ‘मौत के मुहँ’ भेज देखिये !!
करते होड़ ‘जिस्म’ को ‘जिन्दा’ ही जलाने |
ये तुल गये ‘नारीत्व का स्वत्व’ मिटाने ||
ये ‘रूप’ रहे ‘सृष्टि’ का पजार देखिये !
ये ‘अपनी सभ्यता’ रहे विसार देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!६!!
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(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
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‘नारी की
लाज’ हुई ‘तार
तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!
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बहला के, फुसला के, उसे किसी हाल में |
फांसते हैं, कई उसे अपने ‘जाल’ में ||
‘जादू’ जैसे ‘रस भरे’ अपने ‘कमाल’ में |
हैं ‘कोकिलों’ को फंसाते ‘करील-डाल’में ||
या कोई उसके ‘पेट की आग’ बुझाने |
अपनी ‘हविश’ की ‘घिनौनी प्यास’ मिटाने ||
हर तरह करता उसे ‘लाचार’ देखिये !
‘इंसान’ हुआ किस तरह ‘मक्कार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!१!!
यह
बात कितनी है अरे अजीब आजकल !
‘जिन्दा’ जलायी जा रही ‘तहजीब’ आजकल ||
कितना हुआ है देश ‘बदनसीब’ आजकल |
‘इंसानियत’ के गिर गये ‘नसीब’ आजकल ||
फिर भी लगे हैं ‘तरक्की’ के ‘शोर’ मचाने |
‘नारी-प्रगति’ के लगे हैं ‘स्वाँग’ रचाने ||
करते हैं ‘राजनीति’ के व्यवहार देखिये !
बनते ‘सुधारक’, कई तो ‘अवतार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!२!!
‘नारी-सुधार-केन्द्र’ हैं कितने खुल रहे
?
‘आश्रम अनाथों के’ यहाँ, कितने चल रहे ??
इनको चलाने हेतु, कितने ‘नोट’ मिल रहे ?
‘तन’, ‘नारियों-कुमारियों’ के कितने पल रहे ??
‘अपनी कामना की गलित फसल’ उगाने |
तो कई लोग, इनसे बड़ी ‘रकम’ कमाने ||
कर इन के तन का ये रहे ‘व्यापार’ देखिये !
‘निष्ठुर’, जवानी’ पर हुये ‘प्रहार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!३!!
‘भाषण’ की खोली है ‘बड़ी भारी ’ पोटली |
‘बातें’ हैं इनकी ‘ठोस’, किन्तु ‘नीति, ’खोखली’ ||
चलते हैं ‘चाल’, ‘घृणित’ और ‘बहुत दोगली’ |
‘हर बात’ इनकी, ‘झूठ और उलटी’ हो चली ||
‘शोहरत का महल’, ‘नील गगन’ तलक उठाने |
‘ऐयाशियों’ से अपनी ‘रँगी रात’ सजाने ||
करते हैं ‘अस्मिता’ का ये ‘शिकार’ देखिये !
हैं कितने ‘वासना’ के ये ‘बीमार’ देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!४!!
पाला था जिन्हें, बड़े ‘लाड़ और प्यार’ से |
‘अपनी सुता’ की तरह रखा था ‘दुलार’ से ||
सींचा ‘ममत्व’ की ‘सुहानी स्नेह-धार’ से |
वे भी न बचीं इनके ‘घिनौने प्रहार’ से ||
ढाया है ‘ज़ुल्म’ इनकी ‘क्रूर मनोदशा’ ने |
‘बेदर्द’ हैं, ‘निर्लज्ज’, इनके सभी फ़साने ||
खुद पाली ‘तितलियों’ को रहे मार देखिये !
‘रंगीन मछलियों’ को रहे मार देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!५!!
‘लोगों का लोभ’ बन गया, ‘दहेज’ देखिये !
‘शोषण’ से रहे ‘धन’ को ये सहेज देखिये !!
हैं ‘चाहतें इनकी’ बड़ी ‘खूंरेज़’ देखिये !
नारी को रहे ‘मौत के मुहँ’ भेज देखिये !!
करते होड़ ‘जिस्म’ को ‘जिन्दा’ ही जलाने |
ये तुल गये ‘नारीत्व का स्वत्व’ मिटाने ||
ये ‘रूप’ रहे ‘सृष्टि’ का पजार देखिये !
ये ‘अपनी सभ्यता’ रहे विसार देखिये !!
‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !
लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!६!!
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