'अच्छाइयों' के साथ बुराइयां'भी बढती है, यह ठीक ही है क्यों कि यह 'प्रकृति'का नियम है | यह सन्तुलन बना रहे,तो अच्छा है | किन्तु यदि 'अच्छाई' की तुलना में 'बुराई' कई गुना बढ़ जाये, तो चलेगा क्या?यह असन्तुलन ठीक वैसा ही है जैसे,बोये गये अन्न-बीजों के साथ 'खरपतवार' 'फसल' से की गुना बढ़ कर 'फसल' ही चौपट कर दे | (चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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हम तो
‘चोट’ पर ‘चोट’ खाने लगे |
‘नयनों’
में औ ‘अश्रु’ आने लगे ||
‘दर्द
भरे गीत’ विवश गाने लगे ||
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‘मौसमों’
ने बदली आज ऐसी ‘नज़र’ |
ले आई
ऐसा आज ‘बदली’, ‘कहर’ ||
‘नभ’
से गिरी ‘करुणा की धार’ ज़ार ज़ार |
हुआ
नहीं ‘ऊसर’ में रंच भी सुधार ||
‘सुमनों’
के ‘मनों’ को सताने लगे |
‘बागों’
औ ‘वनों’ को सताने लगे ||
‘काँटों
की फसलें’ उगाने लगे |
हम तो
‘चोट’ पर ‘चोट’ खाने लगे ||१||
‘रोशनी’ के ‘प्यासों’ की देखिये ‘समझ’
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लोग हो गये हैं आज कितने ‘नासमझ’ !!
‘ज्योति’ की तलाश में सारा ‘संसार’ |
बुन लिया किन्तु ‘चारों ओर’ ‘अन्धकार’
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‘जुगुनुओं
के गाँव’ जगमगाने लगे |
‘तारों
के पाँव’ डगमगाने लगे ||
‘चन्दा’
को ‘दाँव’ पर लगाने लगे |
हम तो
‘चोट’ पर ‘चोट’ खाने लगे ||२||
‘प्रणय-दान’ कैसे करें ‘सजनी-सजन’ !
बहुत कठिन हो गया है ‘सुख मय शयन’ ||
चढ़ गये हैं ‘आसमान’ पर यहाँ ‘बजार’ |
‘चाहत की भूख’ और है ‘बेशुमार’ ||
‘मन-विहंग’
पंख फड़फड़ाने लगे |
‘मधुर
स्वप्न’ तोड़ कर जगाने लगे ||
‘निराशा
के दर्द-गीत’ गाने लगे |
हम तो
‘चोट’ पर ‘चोट’ खाने लगे ||३||
‘नाश के कगार’ पर खड़ा है ‘विकास’ |
‘आस्था’ से कट चला और ‘विश्वास’ ||
‘पत्थरों’ से भी ‘कठोर’, हो गया
‘दुलार’ |
और ‘स्नेह’ बन गया है आज ‘व्यापार’
||
‘कौड़ी-मोल’लोग
‘दिल’ बिकाने लगे |
‘भावना’
की खिल्लियाँ उड़ाने लगे ||
‘वासना’
को अंग से लगाने लगे |
हम तो
‘चोट’ पर ‘चोट’ खाने लगे ||४||
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सुन्दर लेखन !!
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