प्रसाद गुणीय-शान्त रसीय गीत (सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार )
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
‘सांसारिक
हर बन्धन’ झूठा |
‘स्नेह का
हर इक नाता’ टूटा ||
रह गयी, ‘वित्त-कमाई’ |
किससे करें मिताई !!१!!
‘वाणी’ में, ‘छलमयी मधुरता’ |
और न ‘छलिया चित्त’ सुधरता ||
‘ज़िन्दगानी’ यों बितायी |
किससे करें मिताई !!२!!
‘स्वार्थ’ साधने की है ‘पटुता’ |
‘व्यवहारों’
में है ‘कपट की कटुता’ ||
‘मन’ मेरा ‘हरजाई’ |
किससे करें मिताई !!३!!
‘देश-धरा’ को धरा ‘ताक़’ में |
हर कोई है ‘अपनी ताक’ में ||
ऐसी ‘नीति’ चलाई |
किससे करें मिताई !!४!!
‘जग’, ‘सोने चाँदी का पिन्जरा’ |
‘प्रीति का पन्छी’ इसमें है घिरा
||
अब तक ‘मुक्ति’ न पाई |
किससे करें मिताई !!५!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें