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‘छोटी दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !
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‘नर्क-चतुर्दशी’ कहते हैं’ इसको
सारे लोग |
‘दीवाली’ के पूर्व ‘पर्व यह’,
है ‘सुख का संयोग’ ||
करें ‘सफाई और सजावट’, घर के
सारे लोग |
‘मन’ में उपजें ‘भाव शिवोमय’,
रहें सभी ‘नीरोग’ ||
तभी
‘देवता मृत्यु के’ यम’ ‘दुःख-पंक’ से पार उतारें ||
‘छोटी
दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!१!!
ढूँढ़ें कोई ‘रंक-देवता’, उसको दें
‘कुछ भेंट’ |
कोई ‘विवश भूख से पीड़ित’, उस का भर
दें ‘पेट’ ||
‘कुछ’ बाँटें, ‘जो’ धरा है हमने
‘दोनों हाथ’ समेट |
‘दान-यज्ञ’ का ‘पुण्य’ बटोरें, ‘युग
के सारे सेठ’ ||
‘निर्धनता
की दलदल’ से हम ‘डूबे हुये’ उबारें !!
‘छोटी
दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!२!!
अरे, ’गरीबी’
से बढ़ कर के, नहीं है ‘कोई नर्क’ |
‘सामूहिक
दुःख’ का कारण है,बस ‘आपस का फर्क’ ||
‘भूख’
से दब जाते हैं देखो, ‘ज्ञान के सारे तर्क’ |
‘बेकारों’
को ‘काम’ बाँट दो भूल के ‘तर्क-वितर्क’ ||
और इस
तरह ‘भाषण-बाजी’, छोड़ के देश सुधारें |
‘छोटी
दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!३!!
‘समाज
रूपी देव’ को परसें, ‘मीठा मीठा प्यार’ |
मिल जुल कर हम रहें, करें मत व्यर्थ ‘कोई
तक़रार’ ||
“प्रसून”,
’भेद की खाई’ पाटें,मन में हो न ‘दरार’ |
‘आपस में’
लड़वाने वाली, टूटे ‘हर दीवार’ ||
‘व्यवहारों की पाती’ पर हम, ‘प्रेम के
चित्र’ उतारें ||
‘छोटी
दीवाली के दीपक’, आओ चलो पजारें !!४!!
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