ऐसा भारत सिर
माथे !
(कीर्तन-गीत)
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ऐसा भारत सिर माथे !
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मिट्टी सोंधी,वायु चन्दनी,हर हरियाली नन्दन-वन |
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||
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धरती देती
जहाँ अन्न-धन |
सागर देता
जहाँ सजल घन |
पीड़ा सदा
देख औरों की-
द्रवित सदा
रहता था जन-मन ||
जिसके ‘हृदयस्थल’ से था,दूर सदा रहता ‘क्रन्दन’ ||
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||१||
जहाँ ‘ह्रदय’ में ‘शान्ति’ ‘रमी’ हो |
‘बाहों’ में ‘तलवार’ थमी हो ||
‘धर्म-युद्ध’ का ‘महा प्रणेता’-
जहाँ ‘त्याग से सिंची’ ज़मीं हो ||
जिसकी विस्तृत काया का,कभी न हो सका था खण्डन ||
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||२||
विद्या,कला,बुद्धि का देश |
‘गर्वोन्नत’ जिसका ‘परिवेश’||
जिसका ‘आँचल’ ‘हरा भरा’ है ||
सजे ‘सुमन’ से जिसके केश ||
जिसके ‘गौरव-गीत’ गा रहे, ‘पक्षी, भ्रमरों के गुंजन’ ||
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||३||
‘मन्त्रों के उच्चार’ जहाँ थे |
भरे ‘सकल भण्डार’ जहाँ थे ||
अपना ‘सब कुछ’ ‘जन्म-भूमि’ पर-
देते हँस,जन वार जहाँ थे ||
‘वसुधा पूरी’ ‘अपना घर’ है, ऐसा था जिसका ‘चिंतन’ ||
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||४||
कहीं न ‘रुकने
वाला’ भारत |
कभी न ‘थकने
वाला’ भारत ||
‘कठिनाई’’कठोर’
कितनी हो-
कभी न ‘झुकने वाला’
भारत ||
‘आन बचाने’,‘मान बचाने’,किया ‘मृत्यु’से ‘आलिंगन’ ||
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||५||
पड़े ‘बुद्धि’ पर अब क्यों
‘पत्थर’ ?
‘फटी’ ‘एकता’ की क्यों ‘चादर’
??
‘अपनी गरिमा’ अखण्डता’ थी-
हमने इसका किया ‘निरादर’ ||
जिसका ‘मूल धर्म’ ‘मानवता’,सदा रहा है ‘निर्बन्धन’ |
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||६||
‘मचा रहे’ हम क्यों ‘हुड़दंगा’ ?
हुआ ‘स्वत्व’ कितना ‘अधनंगा’ !!
देख ‘दशा अपने भारत की’-
‘काँप रहा है’ हाय ‘तिरंगा’ !!
जो ‘अपने पुत्रों’ की ‘दुर्मति’ पर करता ‘दुःख-स्पंदन’
||
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||७||
जिसके ‘पन्च तत्व’ से ‘यह तन |
बना है,वह अपना है वतन ||
है जिसका ‘आभार असीमित’-
जिसके लिये ‘सभी कुछ’ अर्पन ||
जिसने किया कोटि ‘वीरों,विद्वानों’ का’ सगर्व ‘प्रजनन’
||
ऐसा भारत सिर माथे,उस भारत को अभिनन्दन ||८||
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सुन्दर प्रवाह | गहरे भाव ||
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
इसी बहाने मीत से, हो जाती है बात |
जवाब देंहटाएंखिल जाते हैं 'हृदय के पोखर,में 'जलजात' ||
'पोखर में जलजात''हास की छटा'बिखेरें |
'स्मृतियों के हंस' उन्हें आ कर के घेरें ||
हैं कितने बड़भाग,ये रिश्ते मिले सुहाने |
मिल जातीं "प्रसून"को खुशियाँ इसी बहाने ||