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सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

गान्धी-यश-गन्ध(१) पुकार के क्रन्दन-स्वर (क) ! आओ बापू तुम आओ ! (व्याजोक्ति)

आप सभी को,पुनीत गान्धी-जयन्ती की हार्दिक वधाइयाँ !गान्धी पर 

आधारित मेरे  एक 'मुक्तक काव्य' की एक रचना प्रस्तुत है !इस 

रचना में 'गान्धी' या बापू',उस 'सामाजिक शक्ति' का प्रतीक है जो 

समाज के वर्तमान रूप को सुधारने हेतु अवतरित हो सकता है !!

(सारे चित्र 'गूगल खोज' से साभार !) 


   
   
     
आओ बापू तुम आओ !
फिर से भारत में छाओ !!



!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

भारत तुम्हें पुकार रहा |

आर्त्त तुम्हें जुहार रहा ||

पड़ीं दरारें ‘धर्मों’में |

और लगा घुन ‘कर्मों’ में ||

चारों और दिखावा है |

कृत्रिम एक छलावा है ||

और ‘एकता’ नकली है |

आज यहाँ क्या असली है ||

तुम ‘संगठना’सिखलाओ !

‘प्रेमामृत’तुम सरसाओ !!

तुम ‘मौलिकता’ पनपाओ !!

जन जन को तुम अपनाओ !!

आओ बापू तुम आओ !!१!!

ऐसे भी कुछ नेता हैं |

जो पूरे अभिनेता हैं ||

खादी का परिधानाम्बर |

आज बना है आडम्बर ||

पहले जो थे ‘वतन-परस्त’ |

आज हुये हैं ‘स्वतन-परस्त’ ||

टूट चुकी ‘मर्यादा’ है |

बूढा हुआ ‘इरादा’ है ||

‘नयी जवानी’ तुम लाओ !

ढंग कोइ भी अपनाओ !!

सब को ‘राहें’ दिखलाओ !

अब न् और तुम बिलखाओ !!

आओ बापू तुम आओ !!२!!

‘आजादी’ आवारा है |

सबके हाथ ‘दुधारा’ है ||

सब अपनी ही सोचरहे |

औरों को सब नोच रहे ||

‘तोड़ चला दम’ ‘साहस’ है |

‘जगा हुआ’ ‘दुस्साहस’ है ||

चारों और ‘अँधेरा’ है |

‘प्रकाश’ ने ‘मुहँ फेरा’ है ||

फिर से ‘दीपक जलवाओ’ !

‘तम की कारा कटवाओ’ !!

‘धुन्ध कलूटी’हटवाओ !!

आओ बापू तुम आओ !!३!!

‘लाज-शर्म’ है ‘दिक्-अम्बर’ |

‘नग्न वाद’का आडम्बर |

‘आवश्यकता’ गौण हुयी |

‘उपादेयता’ ‘मौन हुयी’ ||

मुख्य हुआ है और ‘व्यसन’ |

बढ़ा हुआ है यों ‘फैशन’ ||

अब कलुषित ‘उजियारे’ हैं |

नकली ‘चाँद-सितारे’ हैं ||

‘नया सूर्य’ तुम चमकाओ !


‘मन-सु-गगन’ तुम दमकाओ !!

‘वीराने’ को ‘महकाओ’ !

‘आशा-कोकिल’ ‘चहकाओ’ !

आओ बापू तुम आओ !!४!!

‘आवश्यकता’ ‘मुहँ बाये’ |

सुरसा सा मुहँ फैलाये ||

‘पवन पुत्र उत्पादन का’ |

बढ़ा रहा ‘वजूद तन का’ ||

'यौवन' पर 'महँगाई' है |

'बाजारों' में छाई है ||

बढ़ी कतरें राशन की |

‘उम्र बढ़ी’ है ‘भाषण’ की ||


तुम्हीं ‘समस्या सुलझाओ’ !

और अधिक मत उलझाओ !!

हमें तसल्ली दे जाओ !

‘सुख के बादल बरसाओ’ !!

आओ बापू तुम आओ !!५!!





‘घायल है गणतन्त्र’ यहाँ |

‘पनपा धन का तन्त्र’ यहाँ ||

‘वित्त वाद की धूम’ यहाँ |

‘दबे हुये मासूम’ यहाँ ||  

‘कानूनों पर जंग लगी’ |

‘मनमानी हर अंग लगी’ ||

‘शोषण’ की है ‘आस जगी’ |

‘शोणित की है प्यास जगी’ ||

‘प्रीति-सुमन’ बन ‘खिल जाओ !

‘गन्ध शान्ति की भर जाओ’ !!

‘सत्य का चन्दन’ बन जाओ !   

हमें ‘सुवासित कर जाओ !!

आओ बापू तुम आओ !!६!!




‘शिक्षा-दीक्षा’ ‘बिकती है’ |

‘चतुर समीक्षा’ बिकती है ||

मन्दिर में ‘भगवान’ ‘बिका’ |

‘गली गली’ ‘इंसान’ बिका ||

‘बिकते’ ‘भजन कीर्तन’ हैं |

‘बिका हुआ’ ‘जन-गण’-‘मन’ है ||

‘बिकते’ देखो ‘वोट’ यहाँ !

मुख्य हुये अब ‘नोट’ यहाँ ||

‘लोभ की चादर’ ‘सिमटाओ !

‘श्रद्धा-सेवा’ ‘पनपाओ !!

‘उजडा है’ ‘मधुवन’ आओ !

दुखित हुआ है ‘मन’ आओ !!

आओ बापू तुम आओ !!७!!



जय बापू !जय राष्ट्र-पिता !!


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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