आज एक रहस्य-वादी रचना,'आग के जखीरे' में फँसे 'मेमने' की तरह प्रस्तुत है | रचना में 'प्रियतम' शब्द,समाज की 'वांछित मनोकामना'
के लिये प्रयुक्त है | (सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)
‘अपेक्षा’के ‘तन’पर ‘आघात’
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तची ‘प्रतीक्षाओं की ज्वाला’ में ‘चाहत’ ‘जल उठी’|
अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात’ !!
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‘घोर निराशाओं’ का ‘कुहरा’ |
‘मन-आँगन’ में आज है भरा ||
कैसे किसे बतायें, कैसे ‘बोझल उम्र’ कटी !
उस ‘कोहरे की धुन्ध’ बन् गयी,जैसे ‘काली रात|
अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात’ |!१||
‘सिसकी’ तले दब गया ‘क्रन्दन’ |
क्योंकर हाय ‘तप गया’’चन्दन !!
हमें नहीं रुचता है जो भी,करती ‘प्रकृति-नटी’ |
‘दुश्मन’ ‘जाड़ा’,’दुश्मन’ ‘गर्मी’,’दुश्मन’ है ‘बरसात’||
अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात ’!!२||
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प्यासे प्यासे सूने नयना |
बरसे ज्यों मरुथल में झरना ||
अंग अंग’ की ‘कोमलता’पर हुआ ‘तड़ित का पात ||
अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात ’!!३||
उठीं ‘ह्रदय-सर’ में ‘कुछ लहरें’ ||
‘उन लहरों’ में ‘विगत वेदना’ की ‘बिम्बित छबि’ मिटी |
‘अपने’ से भी ‘अपने’ द्वारा हो न् सकी कुछ बात ||
अरे कुठारापात !‘अपेक्षा’ के तन पर ‘आघात ’!!४||
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आभार भाई जी |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
'प्रेम' में कहीं कोई 'मजबूरी' नहीं होती|
जवाब देंहटाएंइसकी 'किलोमीटरों'में दूरी नहीं होती ||