- ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (ख) आग का खेल (२) !!धधक रहा‘संसार’अरे !! **********************
- (सारे चित्र 'गूगल-खोज'से,मूल चित्रकारों को स धन्यवाद उद्धृत )
!! झुलस रहे हैं ‘अवनी-अम्बर’-
धधक रहा‘संसार’अरे !! **********************
घूम रही गलियों में देखो,’काम-दग्ध रति’’पागल है ! हटो !बचो ! दस लेगी ‘नागिन’ आवारा है ,घायल है !! ‘मानवता’ को डसने निकली,केंचुल-वसन’ उतार अरे !! झुलसरहेहैं ‘अवनी-अम्बर’-धधक रहा‘संसार’अरे !!१!!
आज ‘महा शिव’ का तप देखो,करने भंग,’अनंग’ चला ! ‘यौन-क्रान्ति’का अटल इरादा,’पुष्पायुध’ ले संग चला || ‘मन की खेती’ में बोये हैं,’नियति’ ने आज ‘अंगार’ अरे !! झुलसरहेहैं ‘अवनी-अम्बर’-धधक रहा‘संसार’अरे !!२!!
‘फैशन के कुछ पवन-झकोरे’,’उद्दीपन’ भड़काते हैं | ‘नयी उम्र की नयी फसल’को,शनैः शनैः ‘सुलगाते हैं’|| इस ‘बेढंगे परिवर्तन’ ने जला किया ‘मन’ क्षार अरे !!झुलसरहेहैं ‘अवनी-अम्बर’-धधक रहा‘संसार’अरे !!३!!
‘तन की गोरी,मन की काली’,आज ‘वासना’ दोल रही |‘आकर्षक विष-बुझी कटारी’,और ‘म्यान’से खोल रही || ‘अंधी’ हो कर घुमा रही है,’राहों में ‘तलवार’ अरे !! झुलसरहेहैं ‘अवनी-अम्बर’-धधक रहा‘संसार’अरे !!४!!
धधक रहा‘संसार’अरे !!
‘तन की गोरी,मन की काली’,आज ‘वासना’ दोल रही |
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