! उठो धनञ्जय !
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निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !
‘देवदत्त’ में ‘प्राण’फूँक कर,सोया ‘नाद’ जगाओ तो !!
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मूक-वधिर‘धृत-राष्ट्र’बन गये,’न्याय की देवी’गांधारी |
अपराधों की, अन्यायों की मची हुई मारा मारी ||
धूम मची कैसी‘विकास‘की,हैं खुश कितने नर नारी !!
‘मनमानी’कितनी,उच्छृंखल,इस पर बन्ध लगाओ तो !!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!१!!
जो श्रम करता है उसको भर पेट न मिलती है रोटी |
धन के मद में डूबे पूँजीवादी,नियति लिये खोटी ||
बाँट रहे ‘विष’ धीमा धीमा,बता के ‘अमृत की बूटी’||
जिनके हनन हुये हक़ उनको,अब हक़ अरे दिलाओ तो!!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!२!!
धन-लोलुप तस्कर,उत्कोची, कौरव – वंश यहाँ जागे |
किसी‘व्यवस्था’का वश चलता है न तनिक इनके आगे ||
सोये हैं ‘बल-वीर’ कर्म से चुरा चुरा कर मन भागे ||
कर्तव्यों से इन्हें जोड़ कर, प्रगति पे इन्हें लगाओ तो !!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!३!!
लिसी ‘कर्ण’ को तिरस्कार की चोट कहीं मिलती’ पाना |
आदर दे कर, उसे उठा कर,गले लगा कर अपनाना ||
भटक गया हो किसी के कहने से उस को पथ पर लाना ||
‘भाई’ को ‘अरि’ की कुनीति-पंजे से तनिक बचाओ तो !!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!४!!
किसी ‘शिखण्डी’की न आड़ ले किसी‘भीष्म’का वध करना !
बदनामी का दाग लगेगा,देखो ऐसा मत करना ||
‘नेकनामियों’ की झोली में देखो ‘अपयश’ मत भरना !!
तुम सब को अपने‘पौरुष की सत्ता’ तनिक दिखाओ तो !!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!५!!
किसी‘सत्य-अश्वत्थ’की जड़ को काट के उसे उखाडो मत !
‘शीतल छाया ज्ञान की’ उस से मिलती, उसे उजाड़ो मत !!
‘गुरुता के सम्मान की चादर’ में कुछ धब्बे डालो मत !!
युद्ध करो तो धर्म-युद्ध कर,’गुरु’ की आन बचाओ तो !!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!६!!
‘यक्ष’ हुये हैं छलिया,कपटी’,लाज न आती इन्हें तनिक |
‘पर्यावरण की देवी के रखवाले’ उसी के हुये ‘वधिक’
“प्रसून” के पादप उजड़े हैं,इनको दण्डित करो तनिक !!
पाओ यदि’वनवास’,‘वनों की काया’ आज बचाओ तुम !!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!७!!
‘पर्यावरण की देवी के रखवाले’ उसी के हुये ‘वधिक’
“प्रसून” के पादप उजड़े हैं,इनको दण्डित करो तनिक !!
पाओ यदि’वनवास’,‘वनों की काया’ आज बचाओ तुम !!
निद्रा छोड़ो,उठो धनञ्जय,निज गाण्डीव उठाओ तो !!७!!
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