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मंगलवार, 28 अगस्त 2012

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत- (६) !!!जग उठो चलो ओ री नारी!!


 

                                   


    

!!!जग उठो चलो ओ री नारी!!!



!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

 

तुम करो समर की तैयारी !

जग उठो चलो ओ री नारी !!

‘अत्याचारों की आँधी’ में –

‘चट्टान’बनो आयी बारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!               

                                             

पी ‘अश्रु’बाँटती हो ‘प्रहसन’ |

खा चोट,भरा करती‘गुंजन’ |

उफ़ तलक न की,सह ली ‘पीड़ा’-

वासना भरी ‘गँदली क्रीड़ा’ !!

‘कामुक दबाव’में‘खेल’खेल |

वैवाहिक जीवन समझ ‘जेल’||

‘दीवारों’ में तुम बन्द रहीं |

अब तक न कभी स्वच्छ्न्द रहीं ||

मत सहमो बन के ‘हरिणी’ !

चिक्कारो बन कर ‘केहरिणी’ !!

तुम ऐसा ‘ओजस् घोष’ करो !

जग जाए यह दुनियाँ सारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!१!!

  
 



तुम हो‘विद्या’,हो तुम्हीं‘कला’ |

तुम रहीं ‘सृष्टि’ को और चला ||

‘प्रतिभा’तुम ही,तुम हो ‘गरिमा’ |

तुम ने यह सारा जग जन्मा ||

तुम ‘सुन्दरता’, तुम ‘कोमलता’ |

पर‘अग्नि’,विश्व जिस में जलता||

वह‘अग्नि’नाम नारी का है |

‘ज्वाला’ स्वरूप नारी का है ||

तुम ‘डूबे’ के हित हो ‘तरिणी’ |

तुम बहतीं बन कर ‘निर्झरिणी’|| 

‘प्रेरणा’बनो, मन मन में झरो |

‘दीनता’तजो,तज लाचारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!२!!



  

तुम‘आदि पुरुष’की भी जननी |

तुमसे उपजे अम्बर,अवनी ||

‘सुमनों’ में तुम ही ‘गन्ध’ देवि !

‘तुम-ध्वनि’से,जीवित छन्द देवि !!

ब्रह्मा के घर में सरस्वती |

शिव की तुम देवी महा सती ||

हरि की तुम ही देवी लक्ष्मी |

‘ऊर्जा’बन कर कण कण में रमीं |

तुम ‘रसों’ में एक ‘सरसता’ हो |

‘शशि’,’रवि’में ‘विभा’ की‘क्षमता’हो ||

सोये समाज में ‘शक्ति’ भरो !

मेटो अत्याचारी सारे अत्याचारी !!

जग उठो चलो ओ री नारी !!३!!


    
 

‘निर्वेद-जननि’हो ‘शान्ति तुम्हीं |

‘उत्साह-जननि’हो ‘क्रान्ति’ तुम्हीं ||

‘विप्लव-जननी’हो ‘क्लान्ति’ तुम्हीं |

‘माया’ तुम ही हो ‘भ्रान्ति’ तुम्हीं ||

तुम’बोध-जननि’हो और ‘बुद्धि’ |

‘शुचिता’तुम ही,हो तुम्ही,’शुद्धि’ ||

‘भोगों’ में देखो, ’तृप्ति’ तुम्हीं |

‘तेजों’ में ‘कान्ति’,’दीप्ति’ तुम्हीं |

‘मेघों’ में तुम्हीं ‘दामिनी’ हो |

‘संगीत’ में तुम्हीं ‘रागिनी’ हो ||

‘छंदों’ में ‘गति-यति’बन उतरो !

गूँजे ‘तुम’से दुनियाँ सारी ||

जग उठो चलो ओ री नारी !!४!!

  
      

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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