!!!जग उठो चलो ओ री नारी!!!
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तुम करो समर की तैयारी !
जग उठो चलो ओ री नारी !!
‘अत्याचारों की आँधी’ में –
‘चट्टान’बनो आयी बारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!
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पी ‘अश्रु’बाँटती हो ‘प्रहसन’ |
खा चोट,भरा करती‘गुंजन’ |
उफ़ तलक न की,सह ली ‘पीड़ा’-
वासना भरी ‘गँदली क्रीड़ा’ !!
‘कामुक दबाव’में‘खेल’खेल |
वैवाहिक जीवन समझ ‘जेल’||
‘दीवारों’ में तुम बन्द रहीं |
अब तक न कभी स्वच्छ्न्द रहीं ||
मत सहमो बन के ‘हरिणी’ !
चिक्कारो बन कर ‘केहरिणी’ !!
तुम ऐसा ‘ओजस् घोष’ करो !
जग जाए यह दुनियाँ सारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!१!!
तुम हो‘विद्या’,हो तुम्हीं‘कला’ |
तुम रहीं ‘सृष्टि’ को और चला ||
‘प्रतिभा’तुम ही,तुम हो ‘गरिमा’ |
तुम ने यह सारा जग जन्मा ||
तुम ‘सुन्दरता’, तुम ‘कोमलता’ |
पर‘अग्नि’,विश्व जिस में जलता||
वह‘अग्नि’नाम नारी का है |
‘ज्वाला’ स्वरूप नारी का है ||
तुम ‘डूबे’ के हित हो ‘तरिणी’ |
तुम बहतीं बन कर ‘निर्झरिणी’||
‘प्रेरणा’बनो, मन मन में झरो |
‘दीनता’तजो,तज लाचारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!२!!
तुम‘आदि पुरुष’की भी जननी |
तुमसे उपजे अम्बर,अवनी ||
‘सुमनों’ में तुम ही ‘गन्ध’ देवि !
‘तुम-ध्वनि’से,जीवित छन्द देवि !!
ब्रह्मा के घर में सरस्वती |
शिव की तुम देवी महा सती ||
हरि की तुम ही देवी लक्ष्मी |
‘ऊर्जा’बन कर कण कण में रमीं |
तुम ‘रसों’ में एक ‘सरसता’ हो |
‘शशि’,’रवि’में ‘विभा’ की‘क्षमता’हो ||
सोये समाज में ‘शक्ति’ भरो !
मेटो अत्याचारी सारे अत्याचारी !!
जग उठो चलो ओ री नारी !!३!!
‘निर्वेद-जननि’हो ‘शान्ति तुम्हीं |
‘उत्साह-जननि’हो ‘क्रान्ति’ तुम्हीं ||
‘विप्लव-जननी’हो ‘क्लान्ति’ तुम्हीं |
‘माया’ तुम ही हो ‘भ्रान्ति’ तुम्हीं ||
तुम’बोध-जननि’हो और ‘बुद्धि’ |
‘शुचिता’तुम ही,हो तुम्ही,’शुद्धि’ ||
‘भोगों’ में देखो, ’तृप्ति’ तुम्हीं |
‘तेजों’ में ‘कान्ति’,’दीप्ति’ तुम्हीं |
‘मेघों’ में तुम्हीं ‘दामिनी’ हो |
‘संगीत’ में तुम्हीं ‘रागिनी’ हो ||
‘छंदों’ में ‘गति-यति’बन उतरो !
गूँजे ‘तुम’से दुनियाँ सारी ||
जग उठो चलो ओ री नारी !!४!!
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